Ek Senadhyaksh Ki Atmakatha by J.J. Singh
जोगिंदर जसवंत सिंह अपने परिवार के तीसरी पीढ़ी के सैनिक रहे, जिनकी उम्र एनडीए में भरती होते समय मात्र पंद्रह वर्ष थी। जनरल जे.जे. सिंह भारत के प्रथम सिख सेनाध्यक्ष बने। उनकी तैनाती ऑपरेशनवाले इलाकों में कुछ ज्यादा ही हुई, जिसमें उन्होंने अपना अनुपम योगदान दिया। देश के उत्तर-पूर्वी इलाकों में उग्रवादियों को जंगल तक खदेड़ा, दूसरी तरफ कश्मीर में उन्होंने आतंकवादियों की गोलियों का सामना किया। 1991-93 के बीच कश्मीर में ब्रिगेड कमांडर के रूप में उन्होंने एक नई रणनीति अपनाई और गाँववालों को यह समझाना शुरू किया कि कैसे आतंकवादी उन्हें राह से भटकाने का काम कर रहे हैं। सेनाध्यक्ष का पद सँभालने (2005-07) के बाद उन्होंने ‘लोहे की मुट्ठी और मखमल के दस्ताने’ की नीति अपनाई।
इस दिलचस्प पुस्तक में जनरल सिंह ने बताया है कि सरकार के सर्वोच्च स्तर पर देश की सुरक्षा से जुड़े फैसले किस प्रकार किए जाते हैं, चाहे वह सियाचिन का मामला हो, युद्ध (कारगिल) का या फिर सीमा पर भारी तादाद में फौज का जमावड़ा (ऑपरेशन पराक्रम) करना हो।
सैन्य जीवन को पूरी जिंदादिली से जीने और उसके भरपूर आकर्षण तथा रोमांच का सजीव वर्णन करने के साथ ही जनरल सिंह ने पाकिस्तान और चीन से मिलने वाली चुनौतियों, आतंकवाद, उग्रवाद और नक्सलवाद के खतरे, सैनिक कूटनीति का महत्त्व, और तेजी से बदलते विश्व में सैन्य बलों के अग्रसर रहने के रास्ते आदि अहम और गंभीर मुद्दों का बहुत सुंदर मूल्यांकन तथा विवेचन किया है।
‘जीतने के लिए लड़ो’ के ध्येय के साथ उन्होंने मुश्किलों का धैर्य के साथ सामना किया और इस बात का ध्यान रखा कि उनके अधीन सैनिकों को कुशल नेतृत्व मिले तथा वे हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहें।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
J.J. SINGH |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2013 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789350484258' |
Publication Category |
Premium Books |
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