Sanskritik Rashtravaad by Prabhat Jha

हमारे देश की एकता का मुख्य आधार हमारी संस्कृति है। यही कारण है कि हमारे देश के राष्ट्रवाद को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ही संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार शरीर बिना आत्मा के निरर्थक है, उसी प्रकार संस्कृति से रहित देश निष्प्राण हो जाता है। भारत देश मूलतः संस्कृति प्रधान देश है। हमारे यहाँ जीवन मूल्यों का महत्त्व है, हमारे राष्ट्र का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अजर-अमर है।
हमारे राष्ट्र की मूल अवधारणा का केंद्र-बिंदु ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। हमारी संस्कृति विश्व को जोड़ने का कार्य करती है। भारतीय आत्मा की सृजनात्मक अभिव्यक्ति सबसे पहले दर्शन, धर्म व संस्कृति के क्षेत्रों में हुई।
भारत को ‘भारतमाता’ कहना ही हमारे ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के संस्कार को दरशाता है। हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ही यह देन है कि हम अपने देश में पत्थर, नदियाँ, पहाड़, पेड़-पौधे, पक्षी और संस्कृति पोषक को सदैव पूजते हैं। हमारी उदारता, संवदेनशीलता, मानवता के साथ-साथ सहिष्णुता का मूल कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत ही है।
राष्ट्रवादी विचारधारा ने अपनी सैद्धांतिक निष्ठाओं में ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ को महत्त्वपूर्ण क्यों माना है। किसी भी जीवंत राष्ट्र के लिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के क्या मायने? क्या संस्कृति से कटकर कोई राष्ट्र प्रगति कर सकता है? ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ का यह सही स्वरूप जन-जन तक पहुँचे, इसी दृष्टि से इस पुस्तक का संयोजन किया गया है। ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ विषय को राष्ट्रवादी विचारधारा के शीर्ष नेतृत्व एवं कुछ प्रसिद्ध लेखकों के विचारों और लेखों के माध्यम से रखने का प्रयत्न किया है।

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

PRABHAT JHA

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2016

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

9789351869931'

Publication Category

Premium Books

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