Maupassan Ki Lokpriya Kahaniyan by Guy De Maupassant
“कितनी ही बार तो मैंने इस खुशी को तुममें देखा है! मैंने इसे तुम्हारी आँखों में देखा और अनुमान किया है। तुमने अपने बच्चों को अपनी जीत समझकर उनसे प्यार किया, इसलिए नहीं कि वे तुम्हारा अपना खून थे। वे तो मेरे ऊपर तुम्हारी जीत के प्रतीक थे। वे प्रतीक थे मेरी जवानी, मेरी खूबसूरती, मेरे आकर्षण, मेरी प्रशंसाओं के ऊपर और उन लोगों पर तुम्हारी जीत के जो मेरे आगे खुलकर मेरी प्रशंसा नहीं करते थे, बल्कि धीमे शब्दों में करते रहते थे। तुम उन पर घमंड करते हो, उनकी परेड लगाते हो, तुम उन्हें अपनी गाड़ी में ब्वा द बूलॉनी में घुमाने और मॉमॉराँसी में चड्डी गाँठने ले जाते हो। तुम उन्हें दोपहर का शो दिखाने थिएटर ले जाते हो, ताकि लोग तुम्हें उनके बीच देखें और कहें, ‘कितना रहमदिल बाप है!’
“औरत द्वारा अपने पति को धोखा देने की बात मैं कभी नहीं मान सकती। यदि मान भी लिया जाए कि वह उसे प्रेम नहीं करती, अपनी कसमों और वायदों की परवाह नहीं करती, फिर भी यह कैसे हो सकता है कि वह अपने आपको किसी दूसरे पुरुष के हवाले कर दे? वह दूसरों की आँखों से इस कटु-षड्यंत्र को कैसे छिपा सकती है? झूठ और विद्रोह की स्थिति में प्रेम करना कैसे संभव हो सकता है?”
—इसी पुस्तक से
विश्वप्रसिद्ध कथाकार गाय दी मोपासाँ की असंख्य कहानियों में से चुनी हुई कुछ लोकप्रिय कहानियाँ, जिनमें मानवीय संवेदना है, सामाजिक सरोकार हैं और जीवन के विविध रंगों की झाँकी है।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
Guy de Maupassant |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2018 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789380823751' |
Publication Category |
Premium Books |
Kindly Register and Login to Shri Guru Nanak Dev Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Shri Guru Nanak Dev Digital Library.
You must be logged in to post a review.
Reviews
There are no reviews yet.