Amarfal by Raghavji Madhad
जीवनलाल की विनती सुनकर पीछे खड़े दर्शनार्थी भी क्षण भर के लिए स्तब्ध रह गए। अंदर-अंदर चर्चा होने लगी। इधर गोरखनाथ रहस्यमय ढंग से हँसने लगे, मानो जीवनलाल को क्षणार्ध में समझ गए हों! उनकी हँसी सुहावनी और मनोरम लग रही थी। जीवनलाल के पीछे और अगल-बगल खड़े भक्त गोरखनाथ की यह झलक पाकर मन-ही-मन धन्य हो गए, परंतु जीवनलाल पर उसका कोई प्रभाव लक्षित नहीं हुआ। जीवनलाल की याचना ज्यों-की-त्यों थी।
‘‘जीवनलाल!’’
‘‘हाँ!’’ जीवनलाल चौंका। उसे आश्चर्य हुआ—नाथ मुझे नाम से जानते हैं! वह धन्य हो गया।
‘‘आत्मा तो अविनाशी है। उसे मृत्यु के क्षुद्र संबंध से नहीं जोड़ा जा सकता।… और यह मानव जीवन बार-बार नहीं मिलता। चौंसठ लाख योनियों से होकर गुजरने के बाद…’’
‘‘समझता हूँ नाथ!…सब समझता हूँ।’’ अपेक्षा और इरादे में तनिक भी फेर न पड़े, इसकी पूरी सावधानी रखते हुए जीवनलाल ने कहा, ‘‘इस समझ के रास्ते पर चलकर ही आपके पास इच्छा-मृत्यु के लिए आया हूँ।’’
—इसी पुस्तक से
गुजराती पाठकों द्वारा प्रशंसित ममस्पर्शी, संवेदनशील, भावनात्मक, मनोरंजक एवं सुरुचिपूर्ण ये कहानियाँ हिंदी पाठकों को भी प्रभावित किए बिना नहीं रहेंगी।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
RAGHAVJI MADHAD |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2020 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789387980709' |
Publication Category |
Premium Books |
Kindly Register and Login to Shri Guru Nanak Dev Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Shri Guru Nanak Dev Digital Library.
You must be logged in to post a review.
Reviews
There are no reviews yet.