Alha-Udal Ki Veergatha by Acharya Mayaram Patang
कवि जगनिक रचित ‘परिमाल रासो’ में वर्णित आल्हा-ऊदल की इस वीरगाथा को प्रत्यक्ष युद्ध-वर्णन के रूप में लिखा गया है। बारहवीं शताब्दी में हुए वावरा (52) गढ़ के युद्धों का इसमें प्रत्यक्ष वर्णन है। स्वयं कवि जगनिक ने इन वीरों को महाभारत काल के पांडवों-कौरवों का पुनर्जन्म माना है। बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में इनकी शौर्य गाथाएँ गाँव-गाँव में गाई जाती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ भागों में तो आल्हा को ‘रामचरित मानस’ से भी अधिक लोकप्रियता प्राप्त है। गाँवों में फाल्गुन के दिनों में होली पर ढोल-नगाड़ों के साथ होली गाने की परंपरा है तो आल्हा गानेवाले सावन में मोहल्ले-मोहल्ले रंग जमाते हैं।
मातृभूमि व मातृशक्ति की अपनी अस्मिता, गौरव और मर्यादा की रक्षा के लिए अपूर्व शौर्य और साहस का प्रदर्शन कर शत्रु का प्रतिकार करनेवाले रणबाँकुरों की वीरगाथाएँ, जो पाठक को उस युग की विषमताओं से परिचित कराएँगी; साथ ही आप में शक्ति और समर्पण का भाव जाग्रत् करेंगी।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
ACHARYA MAYARAM PATANG |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2018 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789387980006' |
Publication Category |
Premium Books |
Kindly Register and Login to Shri Guru Nanak Dev Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Shri Guru Nanak Dev Digital Library.
You must be logged in to post a review.
Reviews
There are no reviews yet.