Galat Train Mein by Ashapurna Devi
‘ यह क्या, बाबूजी, आप खुद ही चले आए! मैं आपको बुलाने जा ही रहा था ।
” दिल खोलकर हँस पड़े निखिल हालदार । बोले, ” मैंने सोचा, देखूँ तो सही कि रास्ता ढूँढने में गलती करता हूँ या नहीं । लग रहा है, ईंट-पत्थर ही सबसे भरोसेमंद होते हैं । जरा भी नहीं बदलते । ”
फिर वही सेंटीमेंट ।
नहीं । ऐसे और कितनी देर तक काम चलेगा? उन्हें असली दुनिया में खींचकर न लाने से यही चलता रहेगा ।
” बाबूजी, यह है आपकी बहू । ”
” हाँ! ओह! रहने -दो, बहू । वाह! बहुत अच्छा । यह देखो बहू एक और बूढ़े बच्चे का झमेला तुम्हारे कंधे पर आ पड़ा । ”
” झमेला क्यों कहते हैं, बाबूजी? कितनी खुशी हो रही है हम लोगों को ।. .कल से. .कल आप आए नहीं । कल तो हम लोग एकदम.. .बाद में इतना बुरा लगा । ”
” मत पूछो, बहू । नसीब का लिखा कल जो झमेला गया, तुम लोग सुनोगे तो ‘ बाबूजी कितने बुद्धू हैं ‘ कहकर हँसोगे । कल गलत ट्रेन पर चढ़ गया था । इसी से यह गड़बड़ी हुई । ”
” गलत ट्रेन में!”
” वही तो । नसीब में भुगतना लिखा था । स्टेशन पहुँचा तो… ”
-इसी पुस्तक से
इस उपन्यास की नायिका सुचरिता, जो नायक निखिल की पत्नी है, एक स्वाभिमानी नारी है । वह अपने भाग्य की विडंबना को, अपने पति के गलत निर्णयों को जीवन भर सिर उठाकर झेलती है, पर अंत में उसका साहस साथ छोड़ जाता है; अपने पति की एक अंतिम गलती के लिए वह उसे क्षमा नहीं कर सकी और जीवन के आगे हार गई । प्रसिद्ध बँगला उपन्यासकार आशापूर्णा देवी की सशक्त लेखनी से निःसृत अत्यंत हृदयस्पर्शी कृति, जो पाठकों के मानस-पटल पर वर्षो छाई रहेगी ।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
ASHAPURNA DEVI |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2010 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
8173153639' |
Publication Category |
Premium Books |
Kindly Register and Login to Shri Guru Nanak Dev Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Shri Guru Nanak Dev Digital Library.
You must be logged in to post a review.
Reviews
There are no reviews yet.