Gurudev by Dinkar Joshi

गुरुदेव
उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से पूछा, “क्या आपने ईश्‍वर को देखा है?”
“हाँ, जब मैं कविता लिखता हूँ, उस समय मुझे ईश्‍वर का साक्षात्कार होता है।” टैगोर ने उत्तर दिया।
“ईश्‍वर के अस्तित्व होने का यह कोई प्रमाण नहीं। ईश्‍वर के अस्तित्व का आप कोई प्रमाण दे सकते हैं?”
“इस पृथ्वी पर ऐसा बहुत कुछ है, जिसके बारे में हम कुछ जानते ही नहीं हैं; किंतु इसी कारण ये सब नहीं हैं, ऐसा नहीं कह सकते।”
“भारत के स्वातंत्र्य के लिए इस समय जो संघर्ष चल रहा है, उसके बारे में आपको क्या कहना है?”
“राजनीतिक स्वातंत्र्य के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है; लेकिन राजनीतिक स्वातंत्र्य से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बौद्धिक स्वातंत्र्य है। स्वतंत्र भारत यदि बौद्धिक गुलामी में पड़ा रहा तो राजनीतिक स्वातंत्र्य व्यर्थ हो जाएगा। सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक जागृति अधिक महत्त्वपूर्ण है।”
“राष्‍ट्रभाषा के विषय में आपके क्या विचार हैं?”
“राष्‍ट्र एक ऐसी यांत्रिक व्यवस्था है, जिससे राजनीतिक और आर्थिक हित जुड़े हैं। इसकी बुनियाद संघर्ष और विजय हैं। इसमें सामाजिक सहयोग के लिए कोई स्थान नहीं है।”
—इसी उपन्यास से

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर विश्‍वविख्यात विभूति और भारतीय साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र थे। वे मनीषी, कवि और अपने समय के अग्रगण्य रचनाकार थे। उनका जीवन अनेक त्रासदियों, विडंबनाओं, उपलब्धियों एवं सुख-दु:खों का मिला-जुला रूप था। प्रस्तुत उपन्यास उनके महान् जीवन की गाथा है।

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

Dinkar Joshi

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2011

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

8188140783'

Publication Category

Premium Books

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