Jeevan Gita by Devmuni Shukla

श्रीमद‍्भगवद‍्गीता भारतीय वाड‍्मय का पवित्र एवं अत्यंत लोकप्रिय ग्रंथ है। विश्‍व की अनेक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है; इसकी अनेक टीका एवं समीक्षाएँ लिखी गई हैं। आदि शंकराचार्य से लेकर विनोबा भावे तक अनेक विद्वानों और संत-महात्माओं ने गीता पर भाष्य लिखे। लोकमान्य तिलक ने गीता को निष्काम कर्मयोग का आधार-ग्रंथ प्रतिपादित किया।
गीता का धर्म कर्तव्य का द्योतक है। इसके अनुसार शरीर, इंद्रिय, मन और बुद्धि सभी के कर्तव्य निश्‍च‌ित हैं। मानव शरीर जीवात्मा का परिधान मात्र है। इसमें निष्काम कर्म और संपूर्ण समर्पण के साथ परमात्मा की शरण में जाने पर जीवन की मुक्‍त‌ि का मार्ग दिखाया गया है।
श्रीमद‍्भगवद‍्गीता में आचार की पवित्रता, पाखंड का त्याग, सच्ची निष्‍ठा, फल की इच्छा न रखते हुए कर्तव्य-पालन तथा अहंकार का त्याग कर उत्कृष्‍ट नैतिक मूल्यों के अनुपालन का निर्देश दिया गया है।
श्री देवमुनि शुक्ल ने सरस और प्रवाहमय भाषा में इसका पद्यानुवाद करके इसे ‘जीवन-गीता’ का रूप दिया है। आशा है, सुधी पाठक गीता को पद्य रूप में हृदयंगम कर इसके आदर्श गुणों को अपनाकर अपने उद्धार का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

DEVMUNI SHUKLA

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2010

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

9788177211115'

Publication Category

Premium Books

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