Jug Jannani Janki by Rajendra Arun
मानस के दोहों-चौपाइयों का अर्थ बताते समय धर्म-दर्शन के गूढ़ तत्त्वों और जीवन के सहज किन्तु विस्मृत सत्यों को अपनी मृदु-मधुर शैली में हमारे हृदय की गहराइयों तक उतारते जाना अरुणजी की प्रमुख विशेषता है।
सीता के पावन चरित्र को तुलसी ने बड़ी श्रद्धा और आस्था से सँवारा है। सीता के जीवन में दो कटु प्रसंग आते हैं—अग्नि-परीक्षा और निर्वासन। दोनों प्रसंगों को तुलसी ने अपनी कालजयी काव्य-प्रतिभा के बल पर निष्प्रभावी कर दिया है। उन्होंने लंकावासिनी सीता को छाया सीता बना दिया। लंका-विजय के बाद राम उन्हें पुन: पाने के लिए ‘कछुक दुर्वाद’ कहते हैं। छाया सीता अग्नि में प्रवेश करती हैं और उसमें से वास्तविक सीता निकलती हैं जो न लंका में गयी थीं, न कलंकित ही हुई थीं।
सीता के निर्वासन के प्रसंग को तुलसी ने छुआ तक नहीं है। रामराज्य के वर्णन में उन्होंने लिखा—
एक नारी ब्रत रत सब झारी।
ते मन बच क्रम पति हितकारी।।
ऐसे रामराज्य में धोबी का कलुषित प्रकरण कैसे स्थान पा सकता था!
प्रस्तुत पुस्तक में सीता के त्यागमय और प्रेरणादायी चरित्र का लुभावना अंकन किया गया है।
Publication Language |
Hindi |
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Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
Rajendra Arun |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2009 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9788173156694' |
Publication Category |
Premium Books |
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