Kashi Kabhi Na Chodiye by Shyamla Kant Verma
काशी कभी न छोड़िए
अब न तो नौटंकियों के प्रति उत्साह रह गया है, न कठपुतली नाटकों के प्रति। मनोरंजन के नए साधनों ने लोकगीत और लोक-नृत्य की समृद्ध परंपरा को आहत किया है। स्वतंत्रता पूर्व के कई प्रचलित सिक्कों से वर्तमान पीढ़ी अपरिचित हो चुकी है। नए खेलों ने पुराने खेलों का स्थान ले लिया है। धर्म और संस्कृति के प्रति भी लोग उदासीन दिखाई पड़ते हैं। न धर्मस्थलों को जानने-पहचानने में रुचि है, न कुंडों और कूपों को—और तो और, धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी काशी की जनता भी काशी के इन महत्त्वपूर्ण स्थानों से अपरिचित होती जा रही है। देश की विभिन्न समस्याओं को उजागर करने तथा काशी की महिमा का बोध कराने के उद्देश्य से लिखा गया उपन्यास ‘काशी कभी न छोड़िए’ एक महत्त्वपूर्ण कृति है।
ससाहित्यकार डॉ. श्यामला कांत वर्मा ने व्यक्तिपरक इस सामाजिक उपन्यास में काशी के गौरव को चिह्नित करने में सफलता अर्जित की है। निश्चय ही वाराणसी अपने आपमें एक लघु हिंदुस्तान है। काशी की गंगा-जमुनी संस्कृति अनुकरणीय है। निश्चय ही इसे पढ़कर पाठकगण काशी के वर्तमान सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य की रोचक व ज्ञानपरक जानकारी प्राप्त कर पाएँगे।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
SHYAMLA KANT VERMA |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2010 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
8188267562' |
Publication Category |
Premium Books |
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