Na Gopi, Na Radha by Rajendra Mohan Bhatnagar

‘न गोपी, न राधा’ डॉ. राजेंद्रमोहन भटनागर का अप्रतिम उपन्यास है। मीरा न गोपी थी, न राधा। वह मीरा ही थी। अपने आपमें मीरा होने का जो अर्थ-सौभाग्य है, वह न गोपियों को मिला था और न राधा को। वह अर्थ-सौभाग्य क्या था, यही इस उपन्यास का मर्म है।
इसी मर्म की जिज्ञासा ने डॉ. भटनागर को मीरा पर तीन उपन्यास लिखने की प्रेरणा दी—‘पयस्विनी मीरा’, ‘श्यामप्रिया’ और ‘प्रेमदीवानी’। अचरज यह है कि ये सभी उपन्यास एक-दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं—कथ्य, चरित्र और भाषा-शैली में। इनमें यह उपन्यास तो इन सबसे मूलतः भिन्न है। इसमें मीरा का चरित्र एक वीर क्षत्राणी का है और भक्तिन-समर्पिता का। विद्रोह में समर्पण की सादगी यहाँ द्रष्टव्य है।
पहली बार मीरा का द्वारिका पड़ाव जीवंत हुआ है। पहली बार मीरा का प्रस्तुतिकरण उनके पदों, लोक-कथाओं, बहियों आदि के माध्यम से सामने आया है। पहली बार मीरा का मेवाड़ी, मारवाड़ी, व्रज, गुजराती और राजस्थानी भाषिक बोली संस्कार मुखर हुआ है—नाहिं, नहिं, नाँय, कछु, कछू आदि को अपने में समेटे हुए। पहली बार मीरा को मीरा होने का यहाँ मौलिक अधिकार है।

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

RAJENDRA MOHAN BHATNAGAR

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2017

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

9789386300058'

Publication Category

Premium Books

Kindly Register and Login to Shri Guru Nanak Dev Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Shri Guru Nanak Dev Digital Library.

SKU: 9789386300058.pdf Categories: , Tags: ,
Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Na Gopi, Na Radha by Rajendra Mohan Bhatnagar”