Ravindra Ramayan by Ravindra Jain

जो कथा शिवजी ने पार्वतीजी को, काकभुशुंडिजी ने गरुड़जी को, नारदजी ने वाल्मीकिजी को, याज्ञवल्क्यजी ने मुनि भरद्वाज को सुनाई, जिसकी पतित पावनी धारा तुलसीजी ने जनमानस में बहाई, उस कथा को कहना मेरे लिए दूध की नहर निकालने के समान है। समझने के लिए परमहंस का विवेक चाहिए, उसका प्रिय लगना, कथा श्रवण में रुचि पैदा होना, जन्मजन्म कृत सुकृत का फल जानना चाहिए और वह फल श्रीरामजानकीजी ने मुझे निस्संदेह प्रदान किया है।
महर्षि वाल्मीकि रामकथा के प्रथम कवि हैं। इस कारण उन्होंने प्रथम प्रणम्य का अधिकार प्राप्त कर लिया है। उनका महाकाव्य विद्वज्जन के लिए है। गोस्वामी तुलसीदासजी के रोमरोम में राम रमे हैं। सो उनका रोमरोम प्रणम्य है। उनका लेखन जनसाधारण के लिए है। मेरा प्रयत्न बुद्धिजीवी और जनसाधारण दोनों तक पहुँचने का है। मैं मानता हूँ कि मेरे पास शब्दों का प्राचुर्य नहीं, भाषा का लालित्य नहीं, छंदों की विविधता नहीं, अलंकारों की साजसज्जा नहीं, परंतु सीताराम नाम की दो ऐसी महामणियाँ हैं, जो लोकपरलोक दोनों को जगमगाने के लिए पर्याप्त हैं। राम भी एक नहीं, चारचार। राम स्वयं राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न में आंशिक रूप से राम। सीताराम भवसागर के दो ऐसे जलयान हैं, जो सावधानी से भवसागर पार कराकर वहाँ ले जाते हैं, जहाँ वे स्वयं विराजमान हैं।
सर्वथा अलग और अनोखी रामायण, जो पूर्णतया गेय है, समस्त रसों से भरपूर भक्ति और आस्था का ज्ञानसागर है यह ग्रंथरत्न।

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

RAVINDRA JAIN

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2015

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

9789351862598'

Publication Category

Premium Books

Kindly Register and Login to Shri Guru Nanak Dev Digital Library. Only Registered Users can Access the Content of Shri Guru Nanak Dev Digital Library.

SKU: 9789351862598.pdf Categories: , Tags: ,
Reviews (0)

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Ravindra Ramayan by Ravindra Jain”