Refugee Camp by Ashish Kaul
उसने कहा जब मरना ही है तो चलो मेरे साथ। और बस वो पाँच हजार जिंदा लाशें चल पड़ीं मौत की आँखों में आँखें डालने। वो चल पड़े शांति की तलाश में। कहते हैं अपनी जमीन और हक की एक लड़ाई सहस्रों साल पहले पांडवों को लड़नी पड़ी थी। अपनों को युद्ध में सामने खड़ा देख अर्जुन धर्मसंकट में थे और उन्हें इससे उबारने के समाधान के रूप में गीता का जन्म हुआ।
पर सवाल यह है कि शांति चाहता कौन है? पैसा, बाजार और ताकत तो अशांति में उत्सव मनाते हैं। सरकार और शांति दोनों ही कश्मीर में हर पल हार रहे हैं। कभी पत्थरबाजों के पत्थरों से, कभी सीमापार की गोलियों से, कभी पढ़ाई से बहुत दूर जाते बस्तों से। अकेली आर्मी या सरकार शांति नहीं ला सकती। न्याय, धर्म, स्वाभिमान और मानवता तो सिर्फ और सिर्फ एक आम आदमी की पहल से ही संभव है। क्योंकि एक वो ही है, जिसे शांति में नफा या नुकसान नहीं, जिंदगी दिखती है।
यह कहानी एक ऐसे ही आम आदमी ‘अभिमन्यु’ की कहानी है। वह अभिमन्यु, जिसने ‘अशांति’ के अर्थतंत्र पर सेंधमारी की और शांति के लिए पहला कदम बढ़ाया। और जब वो पहला कदम उठा, उसने एक ऐसी असाधारण परिस्थिति को जन्म दिया, जिसका किसी को भान न था। देखते-ही-देखते पाँच हजार जिंदा लोग एक आम लड़के अभिमन्यु के नेतृत्व में आत्मघाती दस्ते में तब्दील हो गए। शायद वो विश्व का सबसे बड़ा आत्मघाती दस्ता था। जीना तो मुश्किल था ही, पर क्या मरना आसान था? क्या होगा जब इनके आगे भी इनका अतीत खड़ा होगा? क्या इनके आगे भी इनके अपने युद्ध के लिए खड़े होंगे? कुरुक्षेत्र में लड़े गए महाभारत में गीता का जन्म हुआ। क्या यह कहानी ‘रिफ्यूजी कैंप’ वादी में चल रही लड़ाइयों का कोई समाधान खोज पाएगी?
Publication Language |
Hindi |
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Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
ASHISH KAUL |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2018 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789353220426' |
Publication Category |
Premium Books |
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