Ritusanhar by Mool Chandra Pathak

‘ऋतुसंहार’ संभवत: महाकवि कालिदास की काव्य-प्रतिभा का प्रथम प्रसाद है, जिससे पाठक वर्ग प्राय: वंचित ही रहा है। ‘ऋतुसंहार’ का शाब्दिक अर्थ है—ऋतुओं का संघात या समूह। इस काव्य में कवि ने छह ऋतुओं का छह सर्गों में सांगोपांग वर्णन किया है। कवि ने ऋतुचक्र का वर्णन ग्रीष्म से आरंभ कर प्रावृट् (वर्षा), शरत्, हेमंत व शिशिर ऋतुओं का क्रमश: दिग्दर्शन कराते हुए प्रकृति के सर्वव्यापी सौंदर्य, माधुर्य एवं वैभव से संपन्न वसंत ऋतु के साथ इस कृति का समापन किया है।
प्रत्येक ऋतु के संदर्भ में कवि ने न केवल संबंधित कालखंड के प्राकृतिक वैशिष्ट्य, विविध दृश्यों व छवियों का चित्रण किया है, बल्कि हर ऋतु में प्रकृति-जगत् में होनेवाले परिवर्तनों व प्रक्रियाओं के युवक-युवतियों व प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रणय-जीवन पर पड़नेवाले प्रभावों का भी रोमानी शैली में निरूपण व आकलन किया है। प्रकृति के प्रांगण में विहार करनेवाले विभिन्न पशु-पक्षियों तथा नानाविध वृक्षों, लताओं व फूलों को भी कवि भूला नहीं है। वह भारत के प्राकृतिक वैभव तथा जीव-जंतुओं के वैविध्य के साथ-साथ उनके स्वभाव व प्रवृत्तियों से भी पूर्णत: परिचित है। प्रस्तुत काव्य को पढ़ने से भारत की विभिन्न ऋतुओं का सौंदर्य अपने संपूर्ण रूप में हमारी आँखों के समक्ष साक्षात् उपस्थित हो जाता है।
आशा है, मुक्त शैली में रचित यह काव्यानुवाद सुधी पाठकों को पसंद आएगा।

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

MOOL CHANDRA PATHAK

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2011

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

8188140899'

Publication Category

Premium Books

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