Samadhan Ki Ore by Prabhat Jha
भारत में आजादी के बाद देश की मूल समस्याओं की ओर शासकों ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ की मूल समस्याएँ नागरिकों से जुड़ी हैं, जो आज भी उतनी ही ज्वलंत हैं, जितनी पूर्व में रहीं। आजादी के बाद जो भी शासन में आए, उन्होंने आजादी को ही भारत की समस्याओं की जीत समझ लिया। आजाद क्या हुए, सबकुछ मिल गया। जबकि सच्चाई यह है कि आजादी मिलनेवाले दिन से हमें नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं और उनकी जीवन शैली के साथ भारत की प्रकृति के अनुसार उन समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए था। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए। हम आजादी के बाद सत्ता में रहते हुए सेवा के माध्यम से सेवा में कैसे आगे आएँ, की बजाय हम सत्ता के माध्यम से सत्ता में कैसे आएँ, इस दिशा में बढ़ते चले गए— यहीं से हमारी समस्याओं की जड़ें गहरी होती गईं।
इस पुस्तक में देश की ऐसे ही प्राथमिक और ज्वलंत समस्याओं के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। मातृभूमि की सेवा में, भारतमाता की आराधना में जो व्यक्तित्व सदैव अर्चना करते रहते हैं, हमने उनसे देश की ज्वलंत समस्याएँ रखीं और आग्रह किया कि देश में समस्याओं की तो चर्चा होती है, पर समाधान की नहीं। आप तो हमें समाधान दें। अपने भारत की प्रकृति को समझते हुए शब्दों के साधकों ने समाजकल्याण और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में कुछ ठोस ‘शब्दांजलि’ परोसने का प्रयास किया है। हमने इस पुस्तक में उन्हीं के भाव और निदान की दिशा में दिए गए मार्गदर्शन को लेखबद्ध कर राष्ट्रहित में संपादन कर प्रकाशित करने का प्रयास किया है।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
PRABHAT JHA |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2018 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789352669882' |
Publication Category |
Premium Books |
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