Sanskrit Aur Sanskriti by Rajendra Prasad

संस्कृत और संस्कृति

संस्कृत विद्या की महिमा हम भारतवासी पूरी तरह नहीं जानते। उसके अमर रत्‍न ऐसे नहीं हैं, जो केवल दिखावे के लिए आभूषण-मात्र का ही काम देते हों, जिनमें शोभा तो कुछ बढ़ती हो, पर मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति न हो सकती हो। उनमें वह संजीवनी-शक्‍ति भी है, जो मृतप्राय शरीर में भी जान डाल सकती है; पर वह शक्‍ति तभी उपयोग में लाई जा सकती है, जब उनको ठीक उसी तरह शोध और साध लिया जाए, जिस तरह मोती, पन्ना, हीरा और दूसरे जवाहरात को शोध-साधकर ही चतुर वैद्य औषध के रूप में उपयोग करता है और अश्रुत फल दिखलाता है। हमारे पूर्वज ऋषियों और तपस्वियों के अथक-अनवरत परिश्रम एवं खोज का ही फल संस्कृत साहित्य के भांडार में पड़ा है और यदि हम उसके महत्त्व को समझते तथा उसमें लगे रहते तो आज भी हम किसी से पीछे न रहते। आज हमको अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच में लिखे ग्रंथों पर निर्भर होने की जरूरत न पड़ती।
—इसी पुस्तक से

विश्‍व की प्राचीनतम सुसंपन्न भाषा संस्कृत और प्राचीनतम भारतीय संस्कृति पर देशरत्‍न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के विद्वत्तापूर्ण आलेखों और व्याख्यानों का सर्वोपयोगी संकलन संस्कृत और संस्कृति।

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

RAJENDRA PRASAD

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2010

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

9788173157462'

Publication Category

Premium Books

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