Jharkhand Samanya Gyan by Manish Ranjan
बिहार राज्य से पृथक् राज्य बने झारखंड के गठन में सुविधा-वितरण असमानताओं का बड़ा हाथ रहा। पृथक् झारखंड की माँग 19वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही होने लगी थी, जबकि उस समय भारत अंग्रेजी शासन के अधीन था। सौ साल तक चला यह आंदोलन पृथक् राज्य के गठन के लिए विश्व में सबसे अधिक अवधि तक चलनेवाला आंदोलन रहा। जनजातीय बहुल झारखंड वैसे तो प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर है, लेकिन शिक्षा के अभाव ने इस क्षेत्र को बहुत समय तक विकास की मुख्यधारा से दूर रखा। अपने अस्तित्व को बचाने और अपने अधिकारों को प्राप्त करने में झारखंड का आंदोलन और भी विशेष हो जाता है। जनजातियों का दमन और शोषण रोकने के लिए झारखंड की भूमिका पर ऐसे अनेक आंदोलन हुए, जो अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ से ही हो रहे थे। इन आंदोलनों में यहाँ की जनजातियों ने क्या कुछ सहा और देखा, इसकी कल्पना करना भी कठिन है। आज झारखंड पृथक् राज्य बनकर विकास के पथ पर अग्रसर है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘झारखंड सामान्य ज्ञान’ में झारखंड की भौगोलिक स्थिति, खनिज-संपदा, राजनीतिक-सामाजिक स्थिति पर सम्यक् जानकारी जुटाई गई, जो पाठकों के लिए अनेक रूपों में उपयोगी सिद्ध होगी।
Khatti-Meethi Prerak Kahaniyan by Sudha Murthy
इस संग्रह की कहानियों को पढ़कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएँगे। इनमें आप पढेंगे कि एक महिला अपने घरेलू कामों के लिए एक हिजड़े को रखती है; गुंडों का एक समूह बारिश की एक भीगी रात में एक लड़की की रक्षा करता है; एक प्लास्टिक सर्जन एक मरीज का ऑपरेशन करने को इसलिए मना कर देता है, क्योंकि वह अनावश्यक काररवाई की माँग करता है; और एक लड़के की मार्मिक कहानी, जिसने सालों पहले एक बच्चा-लंगूर को निश्चित मौत के मुँह में जाने से बचाया था।
इसके साथ-साथ आप पढ़ेंगे एक ऐसी लड़की की कहानी, जिसने बंदरों के कबीले से भागने में सफलता प्राप्त की; एक खूबसूरत युवती की कहानी, जिसे तेजाब के हमले के बाद घरवालों ने स्वीकारने से मना कर दिया; एक अकेली माँ, जो बड़ी मुश्किल से एक इमारत की आग से बची; एक नवयुवती, जिसने बहुत साहस दिखाया, जब ट्रेन में उसके ऊपर हमला हुआ। आज की महिलाओं को रहम, दया या किसी भीख की जरूरत नहीं है। वे परिवर्तन की तलाश में हैं, विषम परिस्थितियों का सामना कर उनसे पार पाने की क्षमता विकसित कर रही हैं।
अपने आत्मविश्वास को जाग्रत् कर अभीष्ट को पाने की अदम्य इच्छाशक्ति अर्जित करने की प्रेरणा देता खट्टी-मीठी प्रेरक कहानियों का यह संग्रह सभी आयु वर्ग के पाठकों के लिए पठनीय और संग्रहणीय है।
Birsa Kavyanjali by Vikramaditya
बिरसा की जग उठी जिजीविषा,
ललक उठी पढ़ने की,
जो पथ अनदेखा मुंडों को,
वैसा पथ गढ़ने की।
और ईश की माया ऐसी उसने जुगत लगाई,
जयपाल की शाला में हुई, उसकी शुरू पढ़ाई।
विषम घड़ी में भी मनुष्य
अपना भविष्य गढ़ता है,
पता नहीं किसी भाँति विधाता,
राह प्रकट करता है!
बड़े सवेरे उठकर बिरसा नित जाता था शाला,
बाघ, भालुओं से उसका पड़ता ही रहता पाला।
चुभते थे पग में काँटे, उठते थे ढेरों छाले,
माँ ने उन सबको मन के आँसू से धो डाले।
पुत्र कहीं हो, माँ की ममता वहाँ पहुँच जाती है,
पता नहीं किस पथ से आ वह,
उसको सहलाती है।
कौशल्या भी बहुत विकल थीं,
गए राम जब वन को,
रोती थीं वे सोच राम के,
पग की चोट-चुभन को।
माँ तो बस माँ ही होती है,
कौशल्या, मरियम या करमी,
बेटा बस बेटा होता है,
बिरसा सा गरीब या राम सा धर्मी।
जंगल का कोना-कोना तो अब उसका था साथी।
वनवासियों के सिरमौर वीर बिरसा मुंडा का संघर्षमय प्रेरणाप्रद जीवन सबके लिए अनुकरणीय है। उन्होंने अपने ‘युग का प्रश्न’ समझा था, उस युग की पीड़ा पहचानी थी और सबसे ऊपर उसने समय की नब्ज पकड़ी थी। एक सच्चा नायक इससे ज्यादा क्या करता है!
बिरसा मुंडा के जीवन पर खंडकाव्य के रूप में विनम्र काव्यांजलि है यह पुस्तक।
Loktantra Mein Lok by Devdas Apte
वरिष्ठ समाजधर्मी श्री देवदास आपटे के सामाजिक दृष्टिकोण को दरशाते लेखों का पठनीय संकलन। उन्होंने ‘लोक’ के बीच अपना जीवन बिताया है। उनके सुख-दु:ख को देखा, सुना और आत्मसात् किया है। वह ‘लोक’ जिसका जीवन खुली किताब के रूप में होता है। ऐसा ‘लोक’ ग्रामीण जीवन का ही है। अत्यंत सहृदय और संवेदनशील, तो दूसरी तरफ हृदयहीन और कठोर भी। अज्ञान और ज्ञान से भरा हुआ। वह लोक, जो साफ-साफ बोलता है, सबको समझता है।
पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय समस्याओं की गहरी जानकारी, उनके निदान की प्रबल व्यावहारिक सोच और अपनी राजनैतिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देश के कोने-कोने में घूमते रहना आपटेजी के शौक हैं। अतीव संवेदनशील होने के कारण समस्याओं की जड़ तक जाना और उनका समाधान ढूँढ़ना, बेबाकी से बोलना और लिखना इनकी विशेषता रही है।
नेता और जनता, शहर और गाँव, करणीय और अकरणीय में बना फासला दिनानुदिन बढ़ता गया है, इसके साथ समस्याएँ भी। देवदासजी के ये आलेख फासला पाटने की कोशिश करनेवालों के लिए जहाँ मार्गदर्शक हैं, वहीं नीतियाँ और कार्यक्रम बनानेवालों के लिए जानकारियाँ भी।
Rajendra Babu : Patron Ke Aaine Mein-2 by Tara Sinha
किसी भी महान् व्यक्ति के पत्र उसके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने के सशक्त एवं मोहक माध्यम होते हैं। आम जीवन की बहुत सी बातें, जो पेशेवर इतिहासकारों द्वारा नजरअंदाज कर दी जाती हैं, पत्रों में स्थान पाकर उस युग, समाज और पीढ़ी के विषय में बहुमूल्य जानकारियाँ उपलब्ध कराती हैं।
राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी नेता एवं भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पत्रों का इसी दृष्टि से विशेष महत्त्व है। सन् 1905 से 1963 तक की वह अवधि, जिसके बीच लिखे गए पत्रों को कालक्रमानुसार इस संग्रह के दो खंडों में प्रस्तुत किया गया है, राजेंद्र बाबू के घटनापूर्ण जीवन एवं देश के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण युग था। स्वाभाविक है कि ये पत्र न केवल उस युग-पुरुष के लब्धप्रतिष्ठ जीवन के छह दशकों की रोचक कहानी कहते हैं, बल्कि इनमें उस पूरे उथल-पुथल भरे युग का व्यापक व विशद चित्र उभरकर सामने आता है। यही नहीं, इन पत्रों द्वारा राजेंद्र बाबू के जीवन एवं उस काल की कई घटनाओं पर नया प्रकाश पड़ता है और उनके विराट् व्यक्तित्व के अनेक अनजाने पहलू उजागर होते हैं।
Rajendra Babu : Patron Ke Aaine Mein-1 by Tara Sinha
किसी भी महान् व्यक्ति के पत्र उसके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को जानने के सशक्त एवं मोहक माध्यम होते हैं। आम जीवन की बहुत सी बातें, जो पेशेवर इतिहासकारों द्वारा नजरअंदाज कर दी जाती हैं, पत्रों में स्थान पाकर उस युग, समाज और पीढ़ी के विषय में बहुमूल्य जानकारियाँ उपलब्ध कराती हैं।
राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी नेता एवं भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पत्रों का इसी दृष्टि से विशेष महत्त्व है। सन् 1905 से 1963 तक की वह अवधि, जिसके बीच लिखे गए पत्रों को कालक्रमानुसार इस संग्रह के दो खंडों में प्रस्तुत किया गया है, राजेंद्र बाबू के घटनापूर्ण जीवन एवं देश के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण युग था। स्वाभाविक है कि ये पत्र न केवल उस युग-पुरुष के लब्धप्रतिष्ठ जीवन के छह दशकों की रोचक कहानी कहते हैं, बल्कि इनमें उस पूरे उथल-पुथल भरे युग का व्यापक व विशद चित्र उभरकर सामने आता है। यही नहीं, इन पत्रों द्वारा राजेंद्र बाबू के जीवन एवं उस काल की कई घटनाओं पर नया प्रकाश पड़ता है और उनके विराट् व्यक्तित्व के अनेक अनजाने पहलू उजागर होते हैं।
Sahi Soch Aur Safalta by Pramod Batra
सही सोच और सफलता
सही सोच और सफलता व्यक्तित्व विकास एवं व्यवहार-प्रबंधन पर आधारित एक उच्च कोटि की पुस्तक है। इसमें मानव-व्यवहार एवं उसकी सकारात्मक सोच के प्रभावों और परिणामों पर विस्तृत विश्लेषण एवं व्यावहारिक चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि सकारात्मक और सही सोच से हम जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कैसे सफल हो सकते हैं। लेखक का कहना है कि अधिकांश समस्याएँ विचार-शून्यता के कारण उत्पन्न होती हैं। पुस्तक में—‘आनेवाले कल की समस्याएँ आज ही सुलझाएँ’, ‘क्या आपका विद्यार्थी मन नियम से विश्लेषण करता है?’, ‘सफलता और आनंद-प्राप्ति के लिए अपने परिवार से मधुर संबंध बनाए रखें’, ‘तनाव पर कैसे काबू पाएँ’, ‘आत्म-प्रबंधन की प्रेरणादायी कहानियाँ’, ‘सीमित दायरे से बाहर सोचनेवालों की सफलता की गाथाएँ’, ‘भूसे के ढेर में छिपे कुशल प्रबंधन के हीरे’ जैसे उपयोगी अध्यायों के अंतर्गत सही सोच और सफलता पर व्यापक और महत्त्वपूर्ण चर्चा की गई है। प्रस्तुत पुस्तक को पढ़कर सोचने की नई दिशा प्राप्त होती है।
यह कृति सकारात्मक सोच विकसित कर सफलता की राह का कुशल निर्देशन करेगी, ऐसा विश्वास है।
Param Vir Chakra by ian Cardozo
मेजर जनरल इयान कारडोजो का जन्म मुंबई में हुआ और उन्होंने सेंट जेवियर्स स्कूल और कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की। जुलाई 1954 में क्लीमेंट टाउन, देहरादून में ज्वाइंट सर्विसेज विंग में शामिल हुए, जो जनवरी 1955 में पुणे स्थानांतरित हो गया और नेशनल डिफेंस एकेडमी के नाम से प्रसिद्घ हुआ। सन् 1971 में बँगलादेश में सिलहट के युद्ध में जख्मी तथा अक्षम होने पर, एक पाँव खोने की अक्षमता पर, वह विजय प्राप्त कर भारतीय सेना में इन्फैंट्री बटालियन की कमान के लिए स्वीकृत होनेवाले भारतीय सेना के पहले अधिकारी बने। इसके बाद उन्होंने इन्फैंट्री डिवीजन की कमान सँभाली और सन् 1993 में पूर्व में एक कोर के चीफ ऑफ स्टाफ के पद से सेवानिवृत्त हुए। संप्रति वह द स्पास्टिक सोसाइटी ऑफ नॉर्दर्न इंडिया के साथ विकलांगता के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।
Sanskrti Ek : Naam Roop Anek by Devendra Swaroop
स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘पश्चिम के प्राण यदि पाउंड, शिलिंग, पेंस में बसते हैं तो भारत के प्राण धर्म में बसते हैं। भारत धर्म में जीता है। धर्म के लिए जीता है। धर्म ही भारत की आत्मा है।’ भारत का यह मूल तत्त्व उसकी सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह विभिन्न रूपों में सर्वत्र व्याप्त है। आज भी बदरीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, वैष्णो देवी और कैलास मानसरोवर तक की दुर्गम यात्रा-मार्ग पर भक्ति-गीत गाते युवाओं की टोली उस धर्म-युग का प्रकटीकरण ही तो है। ज्ञान-विज्ञान की आधुनिकता के साथ कुंभ मेले में करोड़ों जन का उमड़ आना भी यही दरशाता है। धर्म-अध्यात्म की कथा के वाचकों-उपदेशकों के आयोजनों में समृद्ध, संभ्रांत और शिक्षित वर्ग भी खिंचा चला आता है। स्वाध्याय परिवार, गायत्री परिवार, स्वामीनारायण संप्रदाय, राधास्वामी, निरंकारी समागम के समारोहों में लाखों की संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं। इसका कारण यह है कि हमने धर्म को सर्वोपरि माना, उपासना पद्धति की एकरूपता का आग्रह कभी नहीं रखा; उपासना की विविधता को शिरोधार्य किया। भारतीय समाज जीवन में कभी कोई एक मजहबी केंद्र या चर्च नहीं रहा। ऐसा वैविध्यपूर्ण समाज 1300 वर्ष तक इसलाम व ईसाइयत की एकरूपतावादी विचारधारा से जूझता रहा है। इसके बावजूद उसने अपना मूल चरित्र बनाए रखा है।
भारतीय संस्कृति का माहात्म्य स्थापित करनेवाली चिंतनपरक पुस्तक।
Jharkhand Ke Mele by Sanjay Krishna
झारखंड की विविधतापूर्ण संस्कृति को देखना हो तो यहाँ के मेले इसके सबसे अच्छे उदाहरण हो सकते हैं। इन मेलों में हम झारखंड की पुरातन और अधुनातन संस्कृति, समाज और उनके कार्य-व्यापार को देख-समझ सकते हैं। हम देख सकते हैं उनकी पारंपरिक व्यवस्था, उनके खान-पान, जीवन-शैली, रीति-रिवाज, नृत्य-गीत, हरवा-हथियार, ढोल, मांदर, तुरही, भेर। झारखंड में मेले अब भी जीवित और जीवंत है।
इस पुस्तक में ईंद जतरा मेला, माघ मेला, राँची पहाड़ी का सावन मेला, मुड़मा मेला, जेठ जतरा मेला, शिव मंडा मेला, मुड़हर पहाड़ का मेला, फगडोल मेला, राष्ट्रीय खादी मेला, स्वर्णरेखा महोत्सव मेला, बाँग्ला सांस्कृतिक मेला, रामनवमी मेला, दुर्गा पूजा मेला, दशानन दहन मेला, टुसू मेला, जगन्नाथपुर रथयात्रा मेला, सुकन बुरू मेला, महामाया मंदिर का मेला, चैत्र पूर्णिमा मंडा मेला, रामरेखा धाम मेला, ऐतिहासिक फाल्गुन मेला, शहादत दिवस मेला और बुधू भगत गाँव के मेलों का बड़ा सजीव और रोचक वर्णन प्रस्तुत किया गया है जिससे पाठक झारखंड की समृद्ध परंपराओं और वहाँ के निवासियों की श्रद्धा-भक्ति से परिचित होंगे।
मेलों के माध्यम से झारखंड के जन-जीवन, रीति-रिवाज और लोक-संस्कृति को समझने में सहायक एक अत्यंत उपयोगी पुस्तक।
Premchand Kahani Kosh by Kamal Kishore Goenka
प्रेमचंद जन्म-शताब्दी’ (1980-81) के अवसर पर कई राष्ट्रीय महत्त्व के कार्य हुए। इनमें मेरे द्वारा स्थापित ‘प्रेमचंद जन्म-शताब्दी राष्ट्रीय समिति’, दिल्ली के गठन के साथ ‘प्रेमचंद: विश्वकोश’ (खंड एक व दो) का प्रकाशन तथा अमृतराय द्वारा इसका लोकार्पण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इस शताब्दी-वर्ष में मैंने लगभग 50 हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के विशेषांक निकलवाए और मॉरीशस में शताब्दी-समारोह में जैनेंद्र के साथ मैंने भारतीय प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। ‘प्रेमचंद : विश्वकोश’ के खंडों का हिंदी-समाज में व्यापक रूप से स्वागत किया। इसके दूसरे खंड में प्रेमचंद साहित्य का तथ्यात्मक परिचय और सारांश दिया गया था, अर्थात् उनके उपन्यासों, कहानियों, नाटकों, अनुवादों, पत्र-संग्रहों, बाल-पुस्तकों आदि की पूर्ण तथ्यात्मक जानकारी दी गई थी, जिससे पाठक उनकी प्रत्येक रचना से, चाहे वह छोटा हो या बड़ा अथवा उच्चकोटि की हो या साधारण, सभी के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकें और उनका सारांश भी वह कृति/रचना को मूल रूप में पढ़े बिना जान सकें। ‘प्रेमचंद : विश्वकोश’ का हिंदी-संसार ने बड़ा स्वागत किया और आज भी उसकी माँग बराबर बनी हुई है।
‘प्रेमचंद : विश्वकोश’ के दूसरे खंड में, जिसे ‘प्रेमचंद के साहित्य’ के रूप में प्रस्तुत किया था, प्रेमचंद की उपलब्ध कहानियों का तथा मेरे द्वारा खोजी गई कुछ कहानियों का भी तथ्यात्मक परिचय एवं सारांश दिया गया था, परंतु उसके बाद मुझे प्रेमचंद की कुछ और लुप्त एवं दुर्लभ कहानियाँ मिलती रहीं और वे सब ‘पे्रमचंद का अप्राप्य साहित्य’ (1988) में प्रकाशित की गईं। इस प्रकार ‘मानसरोवर’ की 203 कहानियाँ तथा अमृतराय के ‘गुप्तधन’ में प्रकाशित 56 कहानियों के बाद कुल उपलब्ध कहानियों की संख्या 299 हो गई।
Gandhiji Ki Swadesh Wapsi Ke 100 Varsh by Razi Ahmed
9 जनवरी, 1915 को हिंदुस्तान वापसी की ऐतिहासिक घटना के सौ वर्ष पूरा होने की अहमियत के मद्देनजर 9 जनवरी, 2015 को गांधी संग्रहालय, पटना में दो सत्रों में पूरे दिन का कार्यक्रम आयोजित हुआ। विचार गोष्ठी में जितने भी आलेख प्रस्तुत किए गए या विचार रखे गए, उनमें 9 जनवरी, 1915 का ऐतिहासिक दिन ही उनका केंद्रबिंदु रहा। इस क्रम में अपनी स्वदेश वापसी को गांधीजी ने खुद किस नजर से देखा है, वह भी दिलचस्प है। उन दिनों की गांधीजी की डायरी के पन्नों के अलावा हिंदुस्तान वापसी और हिंदुस्तान को देखने और समझने के सिलसिले में ‘आत्मकथा’ में गांधीजी के अपनी यात्राओं के अनुभवों के आधार पर जो विचार प्रस्तुत किए हैं, वे भी बडे़ रोचक हैं। अत: उसके कुछ पन्ने भी यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं। इसके साथ-साथ तत्कालीन प्रेस की उस वापसी पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी, उसकी मौलिक जानकारी के लिए उन्हें भी यहाँ प्रस्तुत करना उचित समझा गया है।
9 जनवरी, 2015, यानी गांधीजी की स्वदेश वापसी का शताब्दी समारोह पूरे देश में बड़ी संवेदनशील परिस्थिति में आयोजित हुआ है और यह पुस्तक गांधीजी की विदेश वापसी के 100 वर्षों के बाद उसी घटना संबंधी विचारों को प्रस्तुत करती है, जो पाठकों के लिए बेहद उपयोगी है।
Yadon Ke Jharokhon Se: Dr. R.P. Gupta by Dr. Anil Chaturvedi
डॉ. राम के व्यक्तित्व को कुछ शब्दों में बाँचना स्वयं में एक चुनौती है। उनके जीवन और व्यक्तित्व के इतने विविध आयाम हैं, उनकी कर्म-साधना के भिन्न-भिन्न स्तर हैं कि सभी को समग्रता व सहजता से समेटना संभव नहीं। एक सदाशय शल्य चिकित्सक, संस्कारों के सहज संरक्षक, परंपराओं के पोषक, शिक्षा के उन्नायक; वे इस युग में पुरुषोत्तम राम के पर्याय ही हैं। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के अनेकानेक आलोक दीप अंतर्मानस में झिलमिलाते रहते हैं।
‘यादों के झरोखों से’ डॉ. राम के जीवन का दस्तावेज है। स्नेहीजन, परिजन, सहयोगी और सहपाठी सभी ने अपनी भावांजलि, संवेदनाएँ, श्रद्धासुमन, हृदयोद्गार, कलमबद्ध कर इस स्मृति ग्रंथ को संपूर्णता प्रदान की है। अपने गुरु के प्रति श्रद्धा-मिश्रित निष्ठा के भाव का संज्ञान तो सभी करते हैं, किंतु राम ने तो इतिहास ही बदल दिया। एक गुरु की अपने श्रेष्ठतम शिष्य, सहयोगी और साथी के प्रति मार्मिक संवेदना की अभिव्यक्ति, श्रद्धेय गुरुवर स्वर्गीय डॉ. के.सी.महाजन का आलेख, पुस्तक की भूमिका में स्वत: ही परिणित हो गया। हमारे अग्रज श्री ओ.पी. गुप्ता ने जिस लगन व मनन से पल-पल दिन-रात एक कर आलेख, संस्मरण तथा श्रद्धा सुमन से संवेदनाएँ समेंटी एवं सजाईं, वह एक अग्रज के अपने अनुज के प्रति अटूट, असीम, अप्रतिम, अविस्मरणीय अपनत्त्व एवं आस्था का परिचायक है। उसी आशा एवं विश्वास के साथ ‘यादों के झरोखों से’ भावी पीढ़ी को प्रेरणा का स्रोत बन प्रेरित करता रहेगा।
—डॉ. अनिल चतुर्वेदी
Patanjali Yog Sutra by b.K.S.Iyengar
व्यवहारिक ज्ञान से संपन्न पतंजलि का ‘योगसूत्र’ उन लोगों के लिए मार्गदर्शक पुस्तक का कार्य करता है, जो शाश्वत सत्य की खोज में जुटे हैं। खोज करनेवाला साधक इसका अनुसरण और अभ्यास कर वास्तविक महात्मा बन सकता है। योगसूत्र एक दर्शन है, जो खोज करनेवालों को (आत्मा) पुरुष का रूप प्रत्यक्ष तौर पर दिखा देता है। जिस प्रकार एक दर्पण किसी के रूप को दिखाता है, उसी प्रकार योगसूत्रों के अनुसार पतंजलि की बताई योग-साधना करने से व्यक्ति को अपने अंदर एक महान् ऋषि जैसे गुण दिखाई पड़ते हैं।
योग एक विषय के रूप में किसी महासागर जितना विशाल है। व्यक्ति इसमें जितनी गहराई तक उतरता है, उसे गूढ़ रहस्यों का उतना ही ज्ञान होता जाता है, जो किसी के व्यक्तिगत ज्ञान से परे (अकल्पित ज्ञान) होता है। यह किसी भी व्यक्ति के मस्तिष्क की बुद्धि को और आध्यात्मिक हृदय के ज्ञान को धारदार बनाता है। इसका अभ्यास करनेवाले अपने अंदर सृजनात्मकता का विकास कर पाते हैं।
आप अपने दैनिक जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ विश्वास के साथ योग का अभ्यास करें और सच्चे योगी तथा सच्चा मनुष्य बनने का सुफल प्राप्त करें।
जीवन को सार्थक दिशा देनेवाले सूत्रों का संकलन, जो आपके लिए स्वास्थ्य और सफलता के द्वार खोलेंगे।
Mahashakti Bharat by A P J Abdul Kalam
महाशक्ति भारत
क्या भारत एक महाशक्ति बन सकता है? इस प्रश्न के उत्तर में राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने महाशक्ति भारत के स्वरूप की जो रूपरेखा, योजनाओं का जो खाका प्रस्तुत किया है वह व्यावहारिक है। पिछले कुछ वर्षों में देश भर के पाँच लाख से अधिक छात्रों से भेंट कर उनसे ‘महाशक्ति भारत’ के स्वप्न को रचनात्मक कार्यों द्वारा साकार करने का आह्वान किया है और बताया है कि वे कौन से कारक हैं जिनसे भारत विकसित राष्ट्र बनने की राह पर चलता हुआ एक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आने वाला है।
विश्व के पाँच विकसित राष्ट्रों में भारत एक हो, इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत देशवासियों के लिए डॉ. कलाम की योजनाएँ और दिशा-निर्देश विकसित भारत के उनके स्वप्न को साकार करने में मदद करते हैं।
अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत की वर्तमान स्थिति का आकलन करते हुए एक नया लक्ष्य निर्धारित करके उसे प्राप्त करने के उपायों का विश्लेषण करने के साथ ही देश के समग्र विकास में व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर देशवासियों द्वारा निभाई जा सकनेवाली भूमिका को पुस्तक में रेखांकित किया गया है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, जब भारत की युवा शक्ति के समक्ष विकास के विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों—कृषि, उद्योग, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी में कार्य करने के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं, प्रस्तुत पुस्तक की महत्ता और बढ़ जाती है।
राष्ट्रपति डॉ. कलाम की पूर्व-प्रकाशित लोकप्रिय पुस्तकों की ही भाँति सभी छात्रों व युवाओं हेतु प्रेरणाप्रद और उपयोगी पुस्तक।
ा भारत एक महाशक्ति बन सकता है? इस
प्रश्न के उत्तर में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने महाशक्ति भारत के स्वरूप की जो रूपरेखा, योजनाओं का जो खाका प्रस्तुत किया है वह व्यावहारिक है। पिछले कुछ वर्षों में देश भर के पाँच लाख से अधिक छात्रों से भेंट कर उनसे ‘महाशक्ति भारत’ के स्वप्न को रचनात्मक कार्यों द्वारा साकार करने का आह्वान किया है और बताया है कि वे कौन से कारक हैं जिनसे भारत विकसित राष्ट्र बनने की राह पर चलता हुआ एक महाशक्ति के रूप में उभरकर सामने आने वाला है।
अनेक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भारत की वर्तमान स्थिति का आकलन करते हुए एक नया लक्ष्य निर्धारित करके उसे प्राप्त करने के उपायों का विश्लेषण करने के साथ ही देश के समग्र विकास में व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर देशवासियों द्वारा निभाई जा सकनेवाली भूमिका को पुस्तक में रेखांकित किया गया है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, जब भारत की युवा शक्ति के समक्ष विकास के विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों—कृषि, उद्योग, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी में कार्य करने के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं, प्रस्तुत पुस्तक की महत्ता और बढ़ जाती है।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम की पूर्व-प्रकाशित लोकप्रिय पुस्तकों की ही भाँति सभी छात्रों व युवाओं हेतु प्रेरणाप्रद और उपयोगी पुस्तक।
Parvat Aisi Raat by Keshari Nath Triipathi
प्रत्येक व्यक्ति में कहीं-न-कहीं कवि छिपा रहता है। व्यक्ति के मन की गुनगुनाहट ही उसका कवित्व है। कविता की एक विशेषता है, वह सहसा आती है और यदि रुक न पाई तो सहसा ही ऐसी लुप्त होती है कि उसकी पंक्तियाँ और स्वरूप को फिर पकड़ पाना कठिन हो जाता है। तब कवि-मन को छटपटाहट होती है। वह विकल्प से मूल भावनाओं की पूर्ति करता है। वहीं कविता कवि की व्यक्तिगत चिंतनधारा से जुड़ जाती है। न कोई निश्चित स्थान, न निर्धारित परिवेश, कवि किसी भी समय, कहीं भी और कभी भी पहुँच जाता है—चाहे सप्रयास, चाहे अनायास।
विभिन्न कालखंडों और परिस्थितियों में परिलक्षित मानस, कल्पना-लोक, स्वप्नों के आयाम, हर्ष, वेदना, आक्रोश, आशा, निराशा, सौंदर्य, संघर्ष, शांति, जीवन के शाश्वत मूल्य, अध्यात्मोन्मुख भाव, विराट् तक पहुँचने की साध, ईश्वर, सृष्टि, प्रकृति, अंतर्मन की ध्वनि, यथार्थ, मानव की जीवंतता, जिजीविषा आदि सदैव से काव्य की विषयवस्तु रहे हैं। यही कविता को विविधता प्रदान करते हैं।
वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार श्री केशरी नाथ त्रिपाठी की इन कविताओं में दु:ख-सुख, आशा-निराशा, पीड़ा-प्रसन्नता आदि जीवन के तमाम अनुभव हैं, पर स्वयं में जीवन नहीं। जीवन का नाम है—कर्म और उपलब्धि के लिए प्रयास। इसी प्रकार अनुराग, स्नेह, प्रेम व प्यार के अलग-अलग रंग हैं। इस संकलन में ऐसे सभी रंगों की छटा बिखरी है।
Jeevan Jeene Ki Kala by Dalai Lama
जीवन जीने की कला
क्या पारिवारिक जिम्मेदारियों से बँधा एक सामान्य व्यक्ति निर्वाण या बुद्धत्व (बोध) प्राप्त कर सकता है?
अपने कार्य-व्यवसाय में व्यस्त किसी व्यक्ति के लिए महत्त्वाकांक्षाओं की आध्यात्मिक सीमा क्या होनी चाहिए? क्या नकारात्मक भाव अलग-अलग रूपों में सामने आते हैं?
अपने चारों ओर होनेवाले मानवीय अन्याय का सामना करते हुए आप सकारात्मक कैसे बने रह सकते हैं?
इस तरह के अनेक प्रश्नों के उत्तर परम पावन दलाई लामा द्वारा इस पुस्तक में दिए गए हैं। वर्तमान पीढ़ी हेतु भगवान् बुद्ध के ज्ञान और उपदेशों की प्रासंगिकता बताते हुए उन्होंने अपनी अंतश्चेतना को जाग्रत् और विकसित करने के लिए नकारात्मक भावों पर विजय पाने की आवश्यकता तथा आत्मानुभूति के मार्ग के बारे में बताया है। जीवन के विभिन्न पक्षों का ज्ञान रखनेवाले और स्वभाव से सहृदय, व्यवहारशील दलाई लामा ने ऐसे कई विषयों व समस्याओं पर महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं, जो एक सामान्य व्यक्ति के जीवन में प्राय: देखने में आती हैं—संकीर्ण मानसिकता से उत्पन्न लोभ और भावनात्मक पीड़ा से स्वयं को कैसे बचाएँ? विषाद और निराशा को संतोष में कैसे बदलें? आज के इस मुश्किल भरे समय में विभिन्न धर्मों-मतों में सामंजस्य कैसे बनाए रखें?
अपनी तरह की सर्वोत्तम रचना के रूप में यह पुस्तक ‘जीवन जीने की कला’ हमें दलाई लामा की दार्शनिक शिक्षाओं से अवगत कराती हुई वास्तविक मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है।
Andhere Se Ujale Ki Ore by Arun Jaitley
हालाँकि टेलिकॉम सेवाओं में काफी विस्तार हुआ है, लेकिन अब स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए कोई तैयार नहीं। नए निवेशक इस क्षेत्र में आने से हिचक रहे हैं और जो लोग इसमें निवेश कर चुके हैं, वे लाभ कमाने के बाद भी उस माहौल पर अफसोस जता रहे होंगे, जिसमें वे काम कर रहे हैं। सफलता की यह कहानी नाकाम क्यों हो गई? शुरुआत में प्रधानमंत्री ने दूरसंचार विभाग ऐसे मंत्री को सौंपा, जिनके हित खुद इससे जुड़े हुए थे। संप्रग सरकार के पहले दूरसंचार मंत्री के खिलाफ आपराधिक जाँच जारी है।
सीबीआई यूपीए सरकार की महज एक राजनीतिक इकाई बनकर रह गई। सीबीआई निदेशक के रूप में नियुक्त किए गए अधिकारी भी सरकार के दबाव में काम करते रहे और उन्होंने इस जाँच एजेंसी का इस्तेमाल गंभीर अपराधों की जाँच के लिए नहीं, बल्कि सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए किया। सीबीआई द्वारा बसपा की नेता के खिलाफ दायर किए गए मामले में अपना काम किया और बहुजन समाज पार्टी द्वारा दिखाई गई राजनीतिक अवसरवादिता से यह बात साबित भी हो गई।
—इसी पुस्तक से
—इसी पुस्तक से
Mission India by Dr. A.P.J Abdul Kalam And Dr. A. Sivathanu Pillai
भारत महान् राष्ट्र है, जहाँ समृद्ध विरासत एवं ज्ञान का ऐसा भंडार है, जिसमें पूरे विश्व को बदलने की संभावनाएँ निहित हैं। पिछले हजारों वर्षों से इस देश की संस्कृति, वैज्ञानिक प्रतिभाओं तथा सभ्यता पर लगातार आक्रमण होते रहे। औद्योगिक क्रांति के प्रति उदासीनता, कृषि की खराब स्थिति, संसाधनों के कुप्रबंधन तथा बढ़ती आबादी से महान् राष्ट्र की समृद्धि का हृस होता रहा। इस राष्ट्र के महान् नेताओं ने भारत की स्वाधीनता का सपना देखा तथा राष्ट्र की प्रगति के लिए रोडमैप तैयार किया। विशाल प्राकृतिक संसाधन, जैव विविधता और मानव संसाधन होने के बावजूद भारत को अभी भी अपने अतीत का गौरव प्राप्त करना है।
इस दिशा में महान् वैज्ञानिकों ने कार्य योजना के साथ टेक्नोलॉजी 2020 विजन तैयार किया, ताकि वर्ष 2020 तक आर्थिक स्तर पर भारत विश्व की महाशक्ति के रूप में उभर सके। विज्ञान और प्रौद्योगिकी की गहन समझ तथा इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए योजनाएँ तैयार करके ही राष्ट्र सुदृढ बन पाएगा। यदि हम अपनी सोच बदल लें तो निश्चित रूप से भारत को इस ज्ञान के युग में ग्लोबल लीडर बनने का अवसर मिलेगा। स्वप्नदर्शी डॉ. कलाम का एक ही मिशन था ‘मिशन इंडिया’, जिसके अंतर्गत वे एक विकसित भारत के स्वप्न को साकार होते देखना चाहते थे। यह पुस्तक उसी भविष्य के भारत का दिग्दर्शन कराती है।
Kalam Sir Ke Success Path by Surekha Bhargava
कलाम सर प्रेरणा और सम्मान की प्रतिमूर्ति थे। इस पुस्तक में शिक्षाओं व उनकी प्रार्थनाओं को शब्दों में पिरोने की कोशिश की गई है। एक ऐसी माला बनाई गई है, जिसके मन के आपके मन को अंदर से छूने की कोशिश करेंगे। और अगर आप इजाजत देंगे, तो ये आपके मन-मस्तिष्क में ऐसा मंथन शुरू करेंगे, जिसके अंत में आप अपनी पसंद की सफलता का माखन चख ही लेंगे।
कलाम सर के ये पाठ हर उस व्यक्ति के लिए हैं, जो सपने देखता है, उन सपनों के लिए कुछ करना चाहता है, कठिनाइयों से ऊपर उठना चाहता है, कुछ बनना चाहता है और कुछ कर गुजरना चाहता है। ये कविताएँ उसी मन को उठाने का प्रयास है, जो सक्षम है, और ‘जो’सिर्फ ‘जो’ कलाम सर के भारत को विकसित देशब नाने के स्वप्न को पूरा कर सकता है।
ये कविताएँ आह्वान हैं कि आइए, कलाम सर के इस सपने को हम सब व्यक्तिगत रूप से लें और न केवल अपनी सफलता के लिए सतत प्रयास करें बल्कि यदि अपने आस-पास किसी को कोई भी सपना बुनते देखें और उसको कुछ करते देखें तो उसको प्रोत्साहित करें, उसका साथ दें। कुछ ऐसा करें कि हर दिल में तिरंगा लहराने की बात, कलाम सर जिस शान से किया करते थे, उसका मान रह जाए।
सफलता पर जब हमारा ध्यान हो तो हमें कैसा बनना है, कैसे अपने मूल्यों से कोई समझौता नहीं करना है और कैसे कठिन परिस्थितियों व परिश्रम के बीच भी खुद को कोमल बनाए रखना है, ये सब बातें ही डॉ. कलाम लगातार सिखाते थे। इसके अंदर आई कविताएँ संक्षेप में उनके नजरिए को पेश करने की छोटी सी कोशिश है।
आइए, इसी अग्नि को हम भी अपने-अपने दिलों में प्रज्वलित करें और अपने आपसे यह वादा करें कि इन पाठों को सीखकर, सिखाकर और सफलता का जिम्मा उठाकर हम भी अपने जीवन को सार्थक करेंगे और देश को एक विकसित देश बनाने में योगदान देंगे।
Dalit Sahitya : Nai Chunautiyan by Ramshankar Katheria
वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में, जब इतिहास के अंत की घोषणा की जा रही है, स्मृतियों के ध्वस का नारा उछाला जा रहा है, सामाजिक सरोकारों का विकेंद्रीकरण हो रहा है—ऐसे में यदि दलित साहित्य सीमित और संकीर्ण होता जाएगा, तो वह बाबा साहब भीमराव के आदर्शों के एकदम विपरीत होगा।
बाबा भीमराव साहित्य को तरक्की का आधार मानते थे, वहीं साहित्यकारों का महत्त्व भी उनकी दृष्टि में सम्मानजनक था। आज दलित साहित्य जिस प्रकार अपनी समस्याओं और स्वार्थों तक सीमित हो गया है, उससे बाबा साहब कदापि सहमत नहीं हो सकते थे। वे न केवल दलितों को, अपितु दलित साहित्य को संपूर्ण विश्व के दलितों और शोषितों से जोड़ना चाहते थे।
इस दृष्टि से दलित साहित्य को न केवल अपनी सर्जनात्मक क्षमता को वैश्विक स्तर पर सिद्ध करना होगा, बल्कि संपूर्ण दलित एवं शोषित समाज को दूसरे दलित एवं शोषितों को नवजागरण के लिए प्रेरित करना होगा। प्रस्तुत पुस्तक इसी प्रयास की शृंखला में एक कड़ी है, जो दलित साहित्य में पेश आनेवाली चुनौतियों एवं कठिनाइयों का दिग्दर्शन कराती है।
Maa Ka Dard Kya Vo Samjhta Hai by Arun Shourie
एक किताब उन सबके लिए, जिन्हें कष्ट और नुकसान से जूझना पड़ा।
यदि ईश्वर है, जो सबकुछ जानता है, सर्वशक्तिमान है और करुणामय भी है, तो चारों तरफ इतना असहनीय दुःख क्यों?
हमारे धार्मिक शास्त्रों में कष्ट पर सफाई में क्या कहा गया है? क्या वह सफाई जाँच में टिक पाती है?
क्या हमारा अनुभव इस बात को स्वीकार करता है कि ईश्वर है? या फिर दो शैतान— समय और संयोग उन सबका कारण है, जिनसे हमें गुजरना पड़ता है?
दुःख और कष्ट का अनुभव कर चुके अरुण शौरी ने शास्त्रों की अग्नि-परीक्षा ली और फिर हमें बताया कि क्यों अंततः उनका झुकाव बुद्ध की शिक्षा की ओर हुआ। उनकी शिक्षा में हमारे दैनिक जीवन के लिए कौन से संदेश हैं?
Everest Ki Beti by Arunima Sinha
राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा के आगे उज्ज्वल भविष्य था। तभी एक दिन चलती ट्रेन में लुटेरों का मुकाबला करने पर लुटेरों ने उन्हें धकेलकर नीचे गिरा दिया। इस भयानक हादसे से इस चौबीस वर्षीय लड़की को अपना बायाँ पैर गँवाना पड़ा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। एक वर्ष बाद उन्होंने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लिया और माउंट एवरेस्ट पर पहुँचनेवाली पहली विकलांग महिला बनीं। आशा, साहस और पुनरुत्थान की अविस्मरणीय कहानी।
‘पद्मश्री’ और ‘तेनजिंग नोर्गे अवॉर्ड’ से सम्मानित अरुणिमा की कहानी हर छात्र को पढ़नी चाहिए।
Kar Vijay Har Shikhar by Premlata Agrawal
‘कर विजय हर शिखर’ पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठक के लिए एक प्रेरक है। क्योंकि यह केवल आत्मकथा नहीं है, बल्कि एक आम घरेलू महिला के शिखर तक पहुँचने का एक बहुत ही अद्भुत व रोमांचकारी सफर है। पुस्तक में कई ऐसी छोटी-छोटी घटनाओं का भी जिक्र है, जो काफी महत्त्व रखती हैं। यह पुस्तक सिलिगुड़ी की एक आम लड़की प्रेमलता के पद्मश्री प्रेमलता अग्रवाल बनने की कहानी है। पुस्तक में प्रेमलता अग्रवाल के बचपन के कई ऐसे प्रसंगों को बहुत खूबसूरती से पिरोया गया है, जो कहीं-न-कहीं प्रेमलता के भीतर की इच्छा, जिज्ञासा, आत्मविश्वास, एकाग्रता, ईमानदारी, अपने कर्तव्य का दृढता से पालन करने की इच्छाशक्ति, सबको साथ लेकर चलने की भावना
आदि कई ऐसे गुणों की ओर संकेत करती है, जिन्होंने प्रेमलता अग्रवाल को एक आम से खास महिला बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पुस्तक यह भी बताती है कि यदि जीवन में सच्चा गुरु मिल जाए तो जीवन ही बदल जाता है।
अकसर कई लोगों को हम यह कहते सुनते हैं कि आखिर पहाड़ों पर चढ़कर मिलता क्या है? पहले चढ़ो और फिर उतर आओ। यह पुस्तक लोगों के मन में पर्वतारोहण से जुड़े कई छोटे-बड़े सवालों का जवाब भी है।
Aao Bachcho Avishkarak Banen by Dr Apj Abdul Kalam; Srijan Pal Singh
महान् वैज्ञानिकों का मस्तिष्क प्रश्नों से भरा होने के कारण सदैव अशांत रहता है। वे किसी भी बात के लिए पूछते हैं कि ऐसा क्यों होता है? क्या मैं इससे बेहतर कर सकता हूँ? या इससे बेहतर क्या हो सकता है? वे प्रश्नों से लबालब भरे होते हैं, कभी-कभी वे अपने प्रश्नों से दूसरों को भी नाराज कर देते हैं।
प्यारे बच्चो, क्या तुम अनुमान लगा सकते हो कि अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का सबसे अधिक लोकप्रिय छात्र कौन था? वह हेलेन कीलर थी, जो दृष्टिहीन तथा बधिर होने के साथ-साथ एक महान् लेखिका, समाजसेविका तथा कवयित्री थीं। महान् वैज्ञानिक छोटी-से-छोटी घटनाओं से भी अत्यधिक प्रेरित होते हैं। वे असफलता को सफलता प्राप्ति की एक सीढ़ी के रूप में प्रयोग कर लेते हैं।
युवाशक्ति के प्रेरणास्रोत डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का आपसे आग्रह है कि अपना छोटा सा लक्ष्य चुनें, अपने भीतर एक नई ऊर्जा का संचार करें और एक ऊँची उड़ान भरने के लिए उद्यत हो जाएँ।
यह पुस्तक छात्रों-युवाओं में कुछ नया करने की प्रेरणा देती है, ताकि नवाचार और आविष्कार कर हम समाज को बेहतर बनाने में कुछ योगदान दे सकें।
Agni Ki Udaan by A P J Abdul Kalam
त्रिशूल ‘ के लिए मैं ऐसे व्यक्ति की सुलाश में था जिसे न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स एवं मिसाइल युद्ध की ठोस जानकारी हो बल्कि जो टीम के सदस्यों में आपसी समझ बढ़ाने के लिए पेचीदगियों को भी समझा सके और टीम का समर्थन प्राप्त कर सके । इसके लिए मुझे कमांडर एस.आर. मोहन उपयुक्त लगे, जिनमें काम को लगन के साथ करने की जादुई शक्ति थी । कमांडर मोहन नौसेना से रक्षा शोध एवं विकास में आए थे ।
‘ अग्नि ‘, जो मेरा सपना थी, के लिए किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो इस परियोजना में कभी-कभी मेरे दखल को बरदाश्त कर सके । यह बात मुझे आर.एन. अग्रवाल में नजर आई । वह मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेकोलॉजी के विलक्षण छात्रों में से थे । वह डी.आर.डी.एल. में वैमानिकी परीक्षण सुविधाओं का प्रबंधन सँभाल रहे थे ।
तकनीकी जटिलताओं के कारण ‘ आकाश ‘ एवं ‘ नाग ‘ को तब भविष्य की मिसाइलों के रूप में तैयार करने पर विचार किया गया । इनकी गतिविधियाँ करीब आधे दशक बाद तेजी पर होने की उम्मीद थी । इसलिए मैंने ‘ आकाश ‘ के लिए प्रह्लाद और ‘ नाग ‘ के लिए एन. आर. अय्यर को चुना । दो और नौजवानो-वी.के. सारस्वत एवं ए.के. कपूर को क्रमश: सुंदरम तथा मोहन का सहायक नियुक्त किया गया ।
-इसी पुस्तक से
प्रस्तुत पुस्तक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के जीवन की ही कहानी नहीं है बल्कि यह डॉ. कलाम के स्वयं की ऊपर उठने और उनके व्यक्तिगत एवं पेशेवर संघर्षों की कहानी के साथ ‘ अग्नि ‘, ‘ पृथ्वी ‘, ‘ आकाश ‘, ‘ त्रिशूल ‘ और ‘ नाग ‘ मिसाइलों के विकास की भी कहानी है; जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को मिसाइल-संपन्न देश के रूप में जगह दिलाई । यह टेकोलॉजी एवं रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की आजाद भारत की भी कहानी है ।
Loktantra Ki Kasauti by Anant Vijay
लेखक अनंत विजय का कहना है कि बिहार के कस्बाई शहर जमालपुर में स्कूल के दिनों से ही मुझे राजनीति में गहरी रुचि हो गई थी। पता नहीं कैसे और क्यों? राजन इकबाल सीरीज के उपन्यास पढ़ते-पढ़ते मैं कब ‘माया’, ‘रविवार’, ‘दिनमान’ के पन्ने पलटने लग गया, अब ठीक से याद नहीं। मुझे राजनीतिक रिपोर्ट्स और लेख पढ़ना अच्छा लगता था। जमालपुर के रेलवे स्टेशन पर पत्र-पत्रिकाओं की दुकान थी, उसका जो भी मालिक होता था, वह मेरा दोस्त हो जाता था। इससे फायदा यह होता था कि जो पत्रिकाएँ मैं खरीद नहीं पाता था, उसको वहीं खडे़ होकर पढ़ लेता था। बाद में जब ‘टीएनबी कॉलेज’, भागलपुर पहुँचा और हॉस्टल में रहने लगा तो छात्र राजनीति को नजदीक से देखने का मौका मिला। मैंने राजनीति तो कभी की नहीं, लेकिन राजनीतिक विषयों पर पढ़ना अच्छा लगता था। वैसे तो मैं इतिहास का विद्यार्थी था, लेकिन राजनीति की किताबें मुझे सदैव अपनी ओर खींचती रहीं।
बाद में जब मैं दिल्ली आया तो लेखन का आकाश खुला। अखबारों में टिप्पणियाँ लिखने लगा, फिर यह सिलसिला चल निकला। साहित्य में गहरी रुचि होने के कारण पहले तो मैंने जमकर साहित्यिक पत्रकारिता की, बाद में राजनीतिक लेखन की ओर मुड़ा। पिछले एक दशक में भारत की राजनीति में कई बदलाव आए, जिसको रेखांकित करना मुझे आवश्यक लगा और मैंने किया भी। प्रस्तुत पुस्तक में उन्हीं सब का लेखा-जोखा है, जो पाठकों को रुचिकर लगेगा।
Dr. Shyama Prasad Mukerjee Aur Kashmir Samasya by Ritu Kohli
डॉ श्यामाप्रसाद मुकर्जी ने अपना सार्वजनिक जीवन शिक्षाविद् के रूप में आरंभ किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय के वे उपकुलपति रहे। तदुपरांत उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। बंगाल की प्रांतीय राजनीति में मुस्लिम लीग की सांप्रदायिकता से टक्कर ली, हिंदू महासभा के नेता के रूप में हिंदुओं के न्यायोचित हितों और अधिकारों का समर्थन किया और कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति का विरोध किया, राष्ट्रीय स्वातंत्र्य आंदोलन में भाग लेकर भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, देश का विभाजन होने की अपरिहार्य स्थिति उत्पन्न हो जाने पर बंगाल का विभाजन करवाया और बंगाल के बड़े हिस्से को पाकिस्तान में जाने से बचा लिया। आजादी के बाद उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री के रूप में भारत के औद्योगिक विकास की नींव रखी और पूर्वी पाकिस्तान के हिंदुओं के उत्पीड़न और निष्क्रमण के मुद्दे पर नेहरू की नीतियों से असहमत होकर केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। राजनीति में कांग्रेस के राष्ट्रीय विकल्प की आवश्यकता अनुभव कर भारतीय जनसंघ की स्थापना की। कश्मीर के प्रश्न पर डॉ. मुकर्जी ने शेख अब्दुल्ला की अलगाववादी नीतियों का विरोध किया; धारा 370 की समाप्ति तथा जम्मू-कश्मीर केभारतमेंपूर्णविलयकेलिएआंदोलनकियाऔर अपनेजीवनकाबलिदानदिया।कश्मीर काप्रश्नअभीभीअनसुलझा ही है। प्रस्तुत पुस्तक में वर्णित डॉ. मुकर्जी का कर्तृत्व इस अनसुलझे प्रश्न के समाधान की दृष्टि प्रस्तुत करता है।
Yah Samvidhan Hamara Ya Angrejon Ka by Devendra Swaroop
यह पुस्तक या कहें विमर्श से इस तथ्य को रेखांकित करता है कि स्वाधीन भारत की 6 वर्ष लंबी यात्रा की परिणति भ्रष्टाचार, सामाजिक विखंडन, घोर व्यक्तिवादी, सत्तालोलुप राजनैतिक नेतृत्व के उभरने का दृश्य देखकर अनेक मित्रों के मन में प्रश्न उठा कि यदि संविधान हमारे राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करनेवाला पथ है तो 26 जनवरी, 1950 को हमने जिस सांविधानिक मार्ग पर चलना आरंभ किया, वह हमें उल्टी दिशा में क्यों ले जा रहा है? वहीं यह प्रश्न भी उभरता है कि क्या यह संविधान हमारी मौलिक रचना है या ब्रिटिश सरकार द्वारा आरोपित तथाकथित संविधान सुधार प्रक्रिया की अनुकृति? संविधान गलत है या हमारे जिस नेतृत्व ने इसे गढ़ा वह किसी भ्रम का शिकार बन गया था?
हमारे दुःखों का मूल संविधान में है। जो लोग आजादी के बाद से ही व्यवस्था परिवर्तन की पीड़ा से गुजर रहे हैं, वे इस पुस्तक से निदान पा सकते हैं। वह यह कि भारत का संविधान सन् 1935 के अधिनियम का विस्तार है। सिर्फ दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन इस संविधान में हैं। एक, विभिन्न वर्गों के आरक्षण को हटाया गया। दो, वयस्क मताधिकार दिया गया। प्रो. देवेंद्र स्वरूप की इस पुस्तक से यह समझ सकते हैं कि क्यों आजादी के इतने सालों बाद भी समाज का राज्यतंत्र से मेल नहीं बैठ पाया है? क्यों राज्यतंत्र देशज निष्ठाओं से दूर है? क्यों आमजन की सोच और समझ से उसका नाता नहीं जुड़ पाया? इन्हीं और ऐसे तमाम सवालों के जवाब इस पुस्तक में मिलते हैं। यह राजनीतिक इतिहास की वह पुस्तक है, जो भविष्य के सूर्योदय का भरोसा देती है।
Dharamveer Bharti Ki Lokpriya Kahaniyan by dharamveer Bharti
‘‘कुबड़ी-कुबड़ी का हेराना?’’
‘‘सुई हेरानी।’’
‘‘सुई लैके का करबे?’’
‘‘कंथा सीबै!’’
‘‘कंथा सीके का करबे?’’
‘‘लकड़ी लाबै!’’
‘‘लकड़ी लाय के का करबे?’’
‘‘भात पकइबे!’’
‘‘भात पकाय के का करबे?’’
‘‘भात खाबै!’’
‘‘भात के बदले लात खाबे।’’
और इससे पहले कि कुबड़ी बनी हुई मटकी कुछ कह सके, वे उसे जोर से लात मारते और मटकी मुँह के बल गिर पड़ती। उसकी कुहनियाँ और घुटने छिल जाते, आँख में आँसू आ जाते और ओठ दबाकर वह रुलाई रोकती।
बच्चे खुशी से चिल्लाते, ‘‘मार डाला कुबड़ी को! मार डाला कुबड़ी को!’’
—इसी पुस्तक से
साहित्य एवं पत्रकारिता को नए प्रतिमान देनेवाले प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक श्री धर्मवीर भारती के लेखन ने सामान्य जन के हृदय को स्पर्श किया। उनकी कहानियाँ मर्मस्पर्शी, संवेदनशील तथा पठनीयता से भरपूर हैं। प्रस्तुत है उनकी ऐसी कहानियाँ, जिन्होंने पाठकों में अपार लोकप्रियता अर्जित की।