Braj Ke Lokgeeton Ka Yaun Manovishleshan by Dr. Ram Singh
इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति सुखमय एवं आनंदमय जीवन जीने की नैसर्गिक आकांक्षा रखता है, क्योंकि सभी प्राणी आनंद की कोख से उत्पन्न हैं। अत: वे आनंद में ही जीवित रहते हैं—‘आनन्देन जीवन्ति।’ इस आनंद की संप्राप्ति के लिए मनुष्य सतत प्रयत्नशील रहता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ हैं जिसमें काम की अहम भूमिका रहती है, क्योंकि वह सृष्टि का मूलाधार है।
काम जीवन की सनातन संचेतना है, प्रीति की रीति है और संवेगात्मक आत्मा। वात्स्यायन के अनुसार जीने की कला है। फ्रायड ने काम को मानव की जिजीविषा कहा है, उसकी संतृप्ति के बिना शरीर और मस्तिष्क में अनेक रोग हो जाते हैं। काम प्रेम की कला है, जो नर-नारी में आनंदानुभूति संपादित करती है। अलौकिक आनंद की विधायिनी है, सहवासिक क्षरण की चरम परणति, सरस और मधुसिक्त।
लोकगीत लोकजीवन की सहज और सरस अनुभूतियों, विचारों और भावनाओं की लोकवाणी में मार्मिक अभिव्यक्ति हैं। लोकगीत पारदर्शी जीवाश्म है, जिनमें लोक मानव के रीति-रिवाज, मान्यताएँ, धारणाएँ, हर्ष-विषाद तथा चिराचरति आचरण प्रतिबिंबित होते हैं। ब्रज के इन लोकगीतों में यौन मनोवृत्ति का सरस विश्लेषण है, जो न केवल पठनीय है, बल्कि मनोरंजक भी है।
Publication Language |
Hindi |
---|---|
Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
DR. RAM SINGH |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2014 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789383111473' |
Publication Category |
Premium Books |
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