Jhansi Ki Rani by Vrindavan Lal Verma
रानी ने घोड़े की लगाम अपने दाँतों में थामी और दोनों हाथों से तलवार चलाकर अपना मार्ग बनाना आरंभ कर दिया। रानी की दुहत्थु तलवारें आगे का मार्ग साफ करती चली जा रही थीं। रानी के साथ केवल चार सरदार और उनकी तलवारें रह गईं। रानी ने देशमुख की सहायता के लिए सुंदर को इशारा किया और स्वयं संगीनबरदारों को दोनों हाथों की तलवारों से खटाखट साफ करके आगे बढ़ने लगीं। एक संगीनबरदार की हूल रानी के सीने के नीचे पड़ी। उन्होंने उसी समय तलवार से उस संगीनबनदार को खतम किया। हूल करारी थी, परंतु आँतें बच गईं।_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x000D_
रानी ने सोचा, स्वराज्य की नींव बनने जा रही हूँ। रानी के खून बह निकला।_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x000D_
—इसी उपन्यास से_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x000D_
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अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर केंद्रित इस उपन्यास में बाबू वृंदावनलाल वर्मा ने तत्कालीन राजनीतिक-सामाजिक परिवेश का ऐसा सजीव चित्रण किया है मानो पूरा घटनाक्रम हमारी आँखों के सामने हो रहा हो। झाँसी की रानी का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। रानी स्वराज्य के लिए लड़ीं, स्वराज्य के लिए मरीं और स्वराज्य की नींव का पत्थर बनीं।_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x000D_
अद्भुत, प्रेरणाप्रद, पठनीय ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति!
Publication Language |
Hindi |
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Publication Access Type |
Freemium |
Publication Author |
VRINDAVAN LAL VERMA |
Publisher |
Prabhat Prakashana |
Publication Year |
2016 |
Publication Type |
eBooks |
ISBN/ISSN |
9789351868224' |
Publication Category |
Premium Books |
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