Adhyatma Ki Khoj Mein by Sanjiv Shah

जीवन-प्रेमियों के लिए अध्यात्म-विज्ञान
जीवन कितना अमूल्य और दुर्लभ है,
हमारी समझ में क्यों आता नहीं?

जीवन जीने की अभीप्सा एवं अभिलाषा,
हमारे भीतर क्यों प्रज्वलित होती नहीं?

हमारे जीवन की बागडोर किसके हाथ में है,
यह ज्ञान कोई हमें क्यों देता नहीं?

अध्यात्म के बिना जीवन निरर्थक है,
कोई हमें यह क्यों समझाता नहीं?

अध्यात्म बुढ़ापे की कोई प्रवृत्ति नहीं है,
यह सत्य जोर-शोर से क्यों
पुकारा जाता नहीं?

अध्यात्म को जीवन से अलग
नहीं किया जा सकता है,
यह रहस्य हमें कोई क्यों बतलाता नहीं?

शरीर का विज्ञान सभी सीखते हैं,
मन का विज्ञान कुछ ही लोग सीखें!
जीवन का विज्ञान सभी क्यों न सीखें?

Netaji Subhash Ki Rahasyamaya Kahani by Kingshuk Nag

क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू (ताइपे, ताइवान) में एक विमान हादसे में हो गई थी? क्या जोसेफ स्टालिन ने उन्हें साइबेरिया भेज दिया था? या उन्हें छोड़ दिया गया था, जिसके बाद वह किसी तरह भारत पहुँच गए थे? क्या वही उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में रहस्यमयी गुमनामी बाबा थे? यदि ऐसा है, तो वह वापस कैसे लौटे? बोस भारत छोड़कर गए थे तो क्यों गए थे? क्या इसका कारण उनकी राजनीतिक सोच थी, जिसका विरोध कांग्रेस हाई कमान कर रहा था, जो जल्द-से-जल्द अंग्रेजों से सत्ता का हस्तांतरण चाहता था?
अतीत तब जीवंत हो उठता है जब पत्रकार और लेखक किंशुक नाग सुभाष बाबू के और उनसे जुड़े प्रश्नों के उत्तर ऐसे समय में देने का प्रयास करते हैं, जब पुराने दस्तावेजों, और हाल ही में भारत सरकार की ओर से उनकी फाइलों को सार्वजनिक किए जाने के बाद, इस बात में दिलचस्पी फिर से बढ़ गई है कि नेताजी का क्या हुआ।
यह पुस्तक भारत के सबसे करिश्माई नेताओं में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन की दिलचस्प गाथा है और दुनिया के सबसे गहरे रहस्यों में से एक का गहराई से विश्लेषण।

Taqut Watan Ki Humse Hai by Rachna Bisht Rawat

क्या आप जानते हैं कि सेना एक ऐसा पेशा है, जो आपको विचित्र चीजें करने की छूट देता है, जैसे स्काई डाइविंग, रैली ड्राइविंग, पर्वतारोहण, काम पर जाने के लिए हेलीकॉप्टर उड़ाने जैसा काम। आप किसी अन्य क्षेत्र में कल्पना कर सकते हैं क्या? आपको उस काम के लिए पैसा दिया जाता है, जिसे पूरा करने के लिए आप कहीं और खर्च करने के लिए तत्पर रहते हैं और संभव है कि वे अवसर जीवन में शायद कभी हाथ नहीं आते।
यह पुस्तक आपको बताएगी कि सेना के अधिकारी वास्तव में करते क्या हैं और इसके लिए 21 सैन्य अधिकारियों के जीवन की असल कहानियों के माध्यम से आपको रू-ब-रू कराया जाएगा। तथ्य यह है कि सेना के हर अधिकारी के पास दिलचस्प कहानी होती ही है बताने के लिए। लेकिन चूँकि उनको अपने काम और मिशनों के बारे में ज्यादा बात करने की छूट नहीं होती, इसलिए हम उनके तमाम साहसिक कारनामों के बारे में न सुन पाते हैं, न जान पाते हैं। ऐसा शायद पहली बार है, जबकि भारतीय फौजियों ने अपने हैरतअंगेज अनुभव साझा किए हैं।
युवाओं को उत्साहित करने की अद्भुत क्षमता रखनेवाली ये कहानियाँ उन्हें राष्ट्र-कार्य हेतु सक्रिय होने के लिए प्रेरित करेंगी।

The Boy Who Loved by Durjoy Datta

कब और किससे प्यार करें बस ‘यही एक चीज है, जिसकी योजना आप जीवन में कभी बना नहीं सकते।
रघु यह दिखाना चाहता है कि उसकी जिंदगी में कुछ भी अनोखा नहीं है-प्यार करनेवाले मध्यमवर्गीय मातापिता हैं, एक बड़ा भाई है, जिसका वह काफी सम्मान करता है, और किसी आई.आई.टी. में पढ़ने का विचार है। और वह चाहता है कि सबकुछ ऐसा ही लगे-एकदम सामान्य।
अपने सबसे अच्छे दोस्त को उसने स्कूल के स्वीमिंग पूल में डूब जाने दिया, दिल की गहराई में दबा यह अपराध बोध कहीं-न-कहीं उसे दर्द देता रहता है। और फिर जब इस दुनिया से मुँह छिपाकर, दोस्ती और प्यार से मुँह मोड़कर वह खुद को सजा दे रहा होता है, तभी खूबसूरत ब्राह्मी उसका मन मोह लेती है। एक ऐसी लड़की, जो काफी कुछ उसके जैसी है, फिर भी एकदम अलग। रघु खुद को कितना ही रोकने की कोशिश करता है, लेकिन अपने दिल से उसे निकाल नहीं पाता फिर जिंदगी उसे पाताल में पटक देती है, जहाँ उसका सामना अपने सबसे भयंकर डर से होता है।
क्या प्यार में इतनी ताकत होगी कि उसे बाहर निकाल सके? दो भाग वाले रोमांस से भरपूर उपन्यासों का पहला भाग, प्रेमी (द ब्वॉय हू लव्ड), दिल को छू लेने वाला और रहस्य से भरा, असर छोड़नेवाला, विचित्र, आश्चर्यजनक रूप से सच्चा और खतरनाक रूप से काल्पनिक है।

Share Market Shabdakosh by A. Sulthan

शेयर मार्केट शब्दकोश’ शेयर बाजारों में प्रयोग की जानेवाली नई शब्दावली और शब्दों को समझने में नए कारोबारियों को आनेवाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए तैयार किया गया है। सेमिनारों में हिस्सा लेने, वित्तीय कार्यक्रमों को देखने या सुनने और वित्तीय बाजार पर लिखी सामग्री को पढ़ते समय यह पुस्तक मूल्यवान संदर्भ साधन बन सकती है। इस पुस्तक में वित्त और शेयर बाजार में प्रयोग में लाए जाने वाले 600 शब्दों के साथ ही 100 से अधिक संक्षिप्त शब्द और संक्षिप्त विवरण दिए गए हैं।
शेयर बाजार में सफल होने के लिए आवश्यक जानकारी और ज्ञान को बढ़ानेवाली एक व्यावहारिक पुस्तक।

Lalu Leela by Sushil Kumar Modi

लालू प्रसाद ने विधायक, पार्षद, सांसद और मंत्री बनाने के एवज में जहाँ रघुनाथ झा, कांति सिंह जैसे अनेक नेताओं से जमीन-मकान दान में लिखवा लिये, वहीं भ्रष्टाचार से कमाए काले धन को सफेद करने के लिए बीपीएल श्रेणी के ललन चौधरी, रेलवे के खलासी हृदयानंद चौधरी तथा भूमिहीन प्रभुनाथ यादव, चंद्रकांता देवी, सुभाष चौधरी तक से नौकरी, ठेका या अन्य लाभ पहुँचाने के एवज में कीमती जमीन-मकान दान के जरिए हासिल कर लिये।
लालू परिवार ने अपने रिश्तेदारों को भी बेनामी संपत्ति हासिल करने का माध्यम बनाया। भाई के समधियाने, अपनी ससुराल, बेटी के ससुराल के रिश्तेदारों के नाम से पहले अपने काले धन से जमीन-मकान खरीदे और बाद में पत्नी, बेटों व बेटियों के नाम गिफ्ट करवा लिये। ऐसे करीब एक दर्जन मामले उजागर हुए हैं, जिनमें लालू परिवार ने करोड़ों की संपत्ति कौडि़यों के दाम पर राजनेताओं, अपने कारिंदों या रिश्तेदारों से दान करवा ली। इसके अलावा लालू प्रसाद ने संपत्ति हथियाने में आधा दर्जन से ज्यादा मुखौटा कंपनियों (shell companies) का इस्तेमाल करने में राबर्ट वाड्रा को भी मात कर दिया।
पत्नी, बेटों, बेटियों के लिए ही नहीं आनेवाली तीन-तीन पीढि़यों के लिए संपत्ति बटोरने की हवस का नाम है लालू प्रसाद।

Ek Vaigyanik Ki Aatmakatha by C.N.R. Rao

‘एक वैज्ञानिककी आत्मकथा’ (ए लाइफ इन साइंस) पुस्तक में प्रोफेसर सी.एन.आर. राव इस विषय में अपनी यात्रा की चर्चा के साथ ही हमें यह बहुमूल्य ज्ञान देते हैं कि एक महान् वैज्ञानिक बनने के लिए क्या करना पड़ता है। यह पुस्तक उनके शुरुआती जीवन तथा उन मुश्किलों के बारे में बताती है, जिनका सामना उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में अपने सपनों को पूरा करने के प्रयास में करना पड़ा। प्रो. राव स्वतंत्रता पश्चात् के भारत के सबसे विशिष्ट, समर्पित और व्यापक सम्मान पानेवाले एक वैज्ञानिक के जीवन की अनूठी झलक दिखाते हैं। वे अतीत और वर्तमान के प्रमुख वैज्ञानिकों की भी चर्चा करते हैं, जिनसे उन्हें प्रेरणा मिली।
प्रो. राव इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक संकल्प की चर्चा भी विस्तार से करते हैं। वे ऐसे युवाओं को अनमोल सुझाव देते हैं, जो विज्ञान के क्षेत्र में जीवन जीना चाहते हैं और उन अपरिहार्य रुकावटों से निपटने के रास्ते भी सुझाते हैं, जो उत्कृष्टता प्राप्त करने के दौरान पैदा होती हैं।

Dalit Chintan by Shri Ashok Pradhan

बाबा साहब जैसे महान् व्यक्तित्व ने समाज में एक जागरण पैदा किया। लोगों को झकझोरा। उनकी अंतरचेतना में व्यवस्था को बदलने का हौसला दिया। उनके प्रयास से ही देश से अस्पृश्यता समाप्त हुई।
—अटल बिहारी वाजपेयी
पूर्व प्रधानमंत्री
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के आदर्श का मूल तत्त्व है शांति और सामाजिक भाईचारा। उन्होंने जीवनभर गरीबों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया।
—नरेंद्र मोदी
भारत के प्रधानमंत्री
बाबा साहब ने जीवन भर देश की एकता और अखंडता के साथ दलित, शोषित और उत्पीडि़त वर्ग के कल्याण के लिए समाज में जागृति की अलख जगाकर समरसता का भाव स्थापित करने का प्रयास किया।
—अमित शाह
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ ये मूल तत्त्व हैं। मैं समझता हूँ आर्थिक दृष्टि से किसी भी सरकार के लिए इस दायरे के बाहर जाने का कोई कारण ही नहीं बनता है। आज हम रिजर्व बैंक की कल्पना करते हैं। देश आजाद नहीं हुआ था, तब बाबा साहब अंबेडकर ने अपने thesis में भारत में रिजर्व बैंक की कल्पना की थी। आज हम federal sector की बात करते हैं, फाइनेंस कमीशन राज्य की माँग रहती है, इतना पैसा कौन देगा, इतना पैसा कौन देगा, कौन राज्य कैसे क्रम में चलेगा। देश आजाद होने से पहले बाबा साहब अंबेडकर ने यह विचार रखा था फाइनेंस कमीशन का और संपत्ति का बँटवारा केंद्र और राज्य के बीच कैसे हो—इसका गहराई से उन्होंने चिंतन किया था और उन्हीं विचारों के प्रकाश में आज यह फाइनेंस कमीशन, चाहे RBI हो, ऐसे अनेक institutions हैं।
—नरेंद्र मोदी
इस पुस्तक में संकलित माननीय प्रधानमंत्री के भाषण का अंश।

Shraddheya by Bhagwat Sharan Mathur; Siddhartha Shankar Gautam

श्रद्धेय कुशाभाऊ ठाकरे भारतभूमि में मध्य प्रदेश के रत्नशीर्ष हैं। उनकी कुशाग्र मति और भ्रातृत्वशील स्वभाव सभी के लिए प्रेरणाशील रहा है। वे बाल्यकाल से ही आदर्श परिपालन के लिए उद्यत रहे और उत्कृष्ट बालसेवक के रूप में देश की सच्ची सेवा में रत हो गए। गुरु का एकल आह्वान और उनका संघ के लिए प्रचारण का आरंभ किया जाना प्रत्येक राष्ट्रवादी के लिए स्वयं प्रेरणा से कम नहीं है। अल्पकाल में ही उनका नाम श्रेष्ठ संघ-कार्यकर्ताओं में प्रगणित होना गर्व का विषय है। इसका प्रमाण है कि सन् 1956 में जैसे ही उनकी जन्मभूमि एक नवीन स्वतंत्र प्रदेश के रूप में उभरकर सामने आई तो वे मध्य प्रदेश के जनसंघ मोर्चे के संगठन मंत्री बने। कुशाभाऊ सर्वत्र सहज रहते थे। उन्होंने कारावास में भी इस प्रकार सहज पदार्पण किया, मानो वे स्वतंत्र भारत में भी आपातकाल की परतंत्रता का सहर्ष मौन विरोध कर रहे हों। उनकी यह सहिष्णुता एवं सहजता ही उनकी उदात्त छवि की प्रमुख आधारशिला थी।
प्रखर राष्ट्रभक्त, अप्रतिम संघनिष्ठ कार्यकर्ता, दूरद्रष्टा एवं कोटि-कोटि कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्रोत श्रद्धेय कुशाभाऊ ठाकरे के त्यागमय जीवन का विस्तृत वर्णन करती शब्दांजलि।

Ek Pita Ki Janmakatha by Madhav Joshi

माधव जोशी कूची, ब्रश और रंगों के अनुपम शिल्पी हैं। अब तक उनकी रेखाएँ बोलती थीं। शब्दों के जरिए उनका हिंदी में यह पहला चमत्कार है। वे रेखाओं से चित्र बनाते हैं। पर यह किताब उनकी सृजन कूची का शब्दचित्र है। ‘एक पिता की जन्मकथा’ नामक यह किताब उनकी गहन संवेदनाओं का सजल विस्तार है।
इस उपन्यास का विषय नया और शैली प्रयोगात्मक है। कथा पति-पत्नी के परस्पर संबंधों की नई बुनियाद तो डालती ही है, साथ ही कहानी की परंपरागत लीक को भी तोड़ती है। ‘एक पिता की जन्मकथा’ लेखक का जिया और भोगा हुआ यथार्थ है, जिसे उसने भावना के शब्द दिए हैं। गर्भ से पहले संतान के साथ एक ‘पति’ नौ महीनों में कैसे ‘पिता’ में तब्दील हो जाता है। यह कथा ऐसी ही संवेदनाओं का सजीव और भावनात्मक चित्रण है। इसे पढ़कर किसी को भी लगेगा कि यह तो मेरी कथा है, मेरा यथार्थ है। उपन्यास के किरदार पाठकों से निरंतर संवाद करते हैं और उन्हें बाँधे रखते हैं।
इस उपन्यास की दूसरी भाषा इसके रेखाचित्र हैं, जो हमें उस कालावधि के दृश्य-परिदृश्य का बोध कराते हैं। कथा-साहित्य में रेखाओं का ऐसा प्रयोग कम ही देखने को मिलता है, जहाँ चित्र भी शब्द हो जाते हों।
‘एक पिता की जन्मकथा’ हिंदी कथा-साहित्य में अभिनव प्रयोग है। पति और पत्नी के बीच रिश्तों के बदलाव की यह कथा स्मृतियों का सजीव लेखा-जोखा तो है ही, एक अनमोल खजाना भी है, जिसमें आप बाप-बेटी और पति-पत्नी के आपसी रिश्तों के खूबसूरत जेवर को उसकी स्वर्णिम आभा के साथ देख सकते हैं।
—हेमंत शर्मा

Ramayan Ki Kahani, Vigyan Ki Zubani by Smt. Saroj Bala

श्रीराम की जीवनगाथा
तिथि, स्थान तथा संदर्भों के साथ
1. विभिन्न वैज्ञानिक साक्ष्यों से छनकर निकले रामायण रूपी अमृत का आनंद आप भी उठाएँ।
2. इस पुस्तक में रामायण की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के समय महर्षि वाल्मीकि द्वारा देखे गए आकाशीय दृश्यों को प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर के माध्यम से आप भी देखें। निर्धारित खगोलीय तिथियों के समर्थन में दिखाई देंगे, कई रोचक चित्रों के साथ अनेकों अन्य वैज्ञानिक प्रमाण।
3. नए वैज्ञानिक उपकरणों तथा साक्ष्यों का उपयोग कर पुस्तक ने नारायण को मिथ्या बतानेवालों को असत्य सिद्ध कर रामायण में वर्णित घटनाओं की वास्तविकता एवं ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला है।
4. श्रीराम के जीवन में घटी मुख्य घटनाओं के क्रमिक व्योम चित्रों के साथ देखें ताँबे के वाणाग्र, सोने-चाँदी के आभूषण, पत्थरों व मोतियों के गहने, टैराकोट के बरतन तथा विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों के चित्र, जिनकी कार्बन डेटिंग इन्हें सात हजार वर्ष पुराने बताती है।
5. श्रीराम का जन्म अयोध्या में ही हुआ था और उन्होंने एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श भाई, एक आदर्श समाज-सुधारक तथा एक आदर्श शासक के रूप में अतुलनीय उदाहरण पेश किए। पढ़ें अनेक तथ्य व प्रमाण।

Kamta Prasad Singh ‘Kaam’ Pratinidhi Rachnayen by Dr. Rashim Singh/ Dr. Vyas Mani Tripathi

साहित्य-सृजन, राजनीति और समाज-सेवा के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का सर्वश्रेष्ठ दिग्दर्शन करानेवाले कामता प्रसाद सिंह ‘काम’ का व्यक्तित्व एवं कृतित्व अनुपम है। स्वतंत्रता-संग्राम के दृढ़वती सैनिक के रूप में जहाँ उनका योगदान अविस्मरणीय है, वहीं स्वतंत्र भारत में राजनीतिक तथा सामाजिक सेवाओं के लिए भी उनका नाम श्रद्धास्पद है। इन्हीं के बीच उनकी साहित्य साधना का अमृत वरदान भी है, जो उनको साहित्य-जगत् में गौरव-गरिमा से अभिमंडित करता है।
‘काम’ जी की साहित्यिक प्रतिभा बहुमुखी थी। निबंधकार, कहानीकार और कवि होने के साथ-साथ वे डायरी लेखक तथा यात्रा-वृत्तांतकार भी थे। घर, गाँव और देहात पर लिखे गए उनके निबंधों में जहाँ व्यक्ति व्यंजकता है, वहीं दूसरी ओर वस्तुनिष्ठ निबंधों में चिंतन की गंभीरता है। ‘मेरा घर’, ‘मेरा गाँव’ तथा ‘हमारा देहात’ में ‘मैं’, ‘मेरा’ तथा ‘हमारा’ का जो घटाटोप है, उससे तो यही लगता है कि ‘स्व’ केंद्रित लेखन है और लेखक सिर्फ अपनी बात कहता है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसमें निजता के साथ-साथ ‘लोक’ और ‘समाज’ की भी उपस्थिति है। मानवीय मूल्यों का बोध और सौंदर्य-चेतना को जाग्रत् रखने का विधान ‘काम’ जी के लगभग सभी निबंधों में है।

Refugee Camp by Ashish Kaul

उसने कहा जब मरना ही है तो चलो मेरे साथ। और बस वो पाँच हजार जिंदा लाशें चल पड़ीं मौत की आँखों में आँखें डालने। वो चल पड़े शांति की तलाश में। कहते हैं अपनी जमीन और हक की एक लड़ाई सहस्रों साल पहले पांडवों को लड़नी पड़ी थी। अपनों को युद्ध में सामने खड़ा देख अर्जुन धर्मसंकट में थे और उन्हें इससे उबारने के समाधान के रूप में गीता का जन्म हुआ।
पर सवाल यह है कि शांति चाहता कौन है? पैसा, बाजार और ताकत तो अशांति में उत्सव मनाते हैं। सरकार और शांति दोनों ही कश्मीर में हर पल हार रहे हैं। कभी पत्थरबाजों के पत्थरों से, कभी सीमापार की गोलियों से, कभी पढ़ाई से बहुत दूर जाते बस्तों से। अकेली आर्मी या सरकार शांति नहीं ला सकती। न्याय, धर्म, स्वाभिमान और मानवता तो सिर्फ और सिर्फ एक आम आदमी की पहल से ही संभव है। क्योंकि एक वो ही है, जिसे शांति में नफा या नुकसान नहीं, जिंदगी दिखती है।

यह कहानी एक ऐसे ही आम आदमी ‘अभिमन्यु’ की कहानी है। वह अभिमन्यु, जिसने ‘अशांति’ के अर्थतंत्र पर सेंधमारी की और शांति के लिए पहला कदम बढ़ाया। और जब वो पहला कदम उठा, उसने एक ऐसी असाधारण परिस्थिति को जन्म दिया, जिसका किसी को भान न था। देखते-ही-देखते पाँच हजार जिंदा लोग एक आम लड़के अभिमन्यु के नेतृत्व में आत्मघाती दस्ते में तब्दील हो गए। शायद वो विश्व का सबसे बड़ा आत्मघाती दस्ता था। जीना तो मुश्किल था ही, पर क्या मरना आसान था? क्या होगा जब इनके आगे भी इनका अतीत खड़ा होगा? क्या इनके आगे भी इनके अपने युद्ध के लिए खड़े होंगे? कुरुक्षेत्र में लड़े गए महाभारत में गीता का जन्म हुआ। क्या यह कहानी ‘रिफ्यूजी कैंप’ वादी में चल रही लड़ाइयों का कोई समाधान खोज पाएगी?

Congress Ka Phasivad by A. Surya Prakash

कांग्रेस पार्टी हमेशा फासीवाद और फासीवादी प्रवृत्ति के खिलाफ बातें करती रही है। इस पार्टी के नेता दूसरे दलों और उनके नेताओं पर फासीवादी होने का आरोप लगाते रहते हैं, लेकिन सच्चाई इसके एकदम उलट है।
इस पुस्तक में तीन अध्याय हैं, जिसमें कांग्रेस की लोकतांत्रिक परंपराओं की अवमानना और इसकी तानाशाही की चर्चा है।
यह पुस्तक अधिकांश भारतीय नागरिकों की आँखें खोल देगी, जिन्हें उन घटनाओं की जानकारी नहीं है, जिनका उल्लेख इस पुस्तक में है।
कुल मिलाकर यह देश के नागरिकों को आगाह करने के लिए एक प्रयास है, ताकि वे अधिक सतर्क रहें, जिससे भारतीय संविधान के मूल्यों और लोकतांत्रिक परंपराओं को कायम रखा जा सके।

Devi-Vandana by Dr. Vinod Bala Arun

साधना में गहनता और आत्मीयता लाने के लिए परमात्मा को माँ के रूप में देखना हिंदू धर्म की एक विशेषता है। हमारे ऋषियों ने इस बात को बहुत गहराई से समझा था कि माँ के साथ संतान और संतान के साथ माँ का बड़ा आत्मीय और मजबूत संबंध है। बिना किसी छल-कपट, संशय व संकोच के बालक माँ की शरण में चला जाता है और माँ उसके सारे अपराध भुलाकर अपने गले लगा लेती है।
इसीलिए देवी माँ जे जगदंबा हैं, की आराधना का हमारे धर्म में विशेष महत्त्व है। मुख्य रूप से वर्ष में दो बार लगातार नौ रात्रियों तक पूजा, अर्चना एवं वंदन करके भक्त उनकी कृपा पाने का प्रयत्न करता है। उसे विश्वास होता है कि माँ उसके अवगुणों और अपराधों को बिसारकर उसे अपनी शरण में स्थान देंगी।
माँ दुर्गा शक्ति की देवी हैं। जैसे जीवन में हर एक कार्य को करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार परमात्मा को सृजन, पालन और संहार के लिए भी शक्ति की आवश्यकता होती है। भगवती दुर्गा ही वह शक्ति हैं, जिनके सहारे परमात्मा सृष्टि का नियमन करता है।
ऐसी माँ दुर्गा की वंदना के लिए हमने ‘दुर्गा सप्तशती’ के कुछ अंशों का संकलन और संपादन किया है। आशा है इससे भक्त लाभान्वित होंगे।

Ek Din Nepal Mein by Ramesh Pokhariyal ‘Nishank’

नेपाल और भारत के संबंधों का इतिहास अत्यंत पुराना है। भारत और नेपाल के बीच हर क्षेत्र में परस्पर सहयोग और संबंध इतने बहुआयामी और व्यापक हैं कि उन्हें किसी सीमा में नहीं बाँधा जा सकता है।
नेपाल हमारा निकटतम पड़ोसी है। दुनिया के नक्शे में भारत और नेपाल भले ही अलग-अलग देश हों, किंतु भौगोलिक स्वरूप की समानता के साथ-साथ रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, तीज त्योहार तथा दर्शन-चिंतन से लेकर मठ-मंदिर और तीर्थ-पर्व सब एक जैसे ही हैं। एक ओर धर्म और संप्रदाय को लेकर दोनों राष्ट्रों की उदारता एक जैसी है, वहीं दोनों ही देशों के सर्वमान्य आराध्य देव शिव हैं।
पूरी दुनिया में भारत व नेपाल ही ऐसे देश हैं, जिनके बीच आवाजाही में कोई भी रोक-टोक नहीं है। दोनों देशों के मध्य अनादिकाल से रोटी-बेटी का रिश्ता निर्बाध रूप से जारी है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत-नेपाल दो तन, एक मन हैं।

Swayam Ki Ore : Ek Sadhak Ki Diary Se by Dr. Kusum Gaur

पुस्तक ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ एवं ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ दोनों एक ही साधक अर्थात् डॉ. कुसुम गौड़, जो कि अपनी स्वयं की अनुभूति करने के लिए इस यात्रा पर निकलती हैं, की अनुभूतियों का संग्रह
है, जो क्रमशः अलग-अलग तरह से वर्णित है।
जहाँ ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ उन पद्यों का संकलन है, जो साधक को इस यात्रा के दौरान स्वयं अनुभूत होकर स्वयं की भावलहरियों से समय-समय पर प्रस्फुटित हुए तथा ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ इस साधक की स्वयं की ओर क्रमिक गति व अलग-अलग स्तर पर हुई अनुभूतियों व उनकी समझ का वर्णन है।
इस आध्यात्मिक यात्रा के दौरान इस साधक को क्या-क्या परेशानियाँ आईं, कैसी-कैसी रुकावटें आईं, कैसे उनका निराकरण हुआ तथा कैसे उनसे निपटना हुआ, उनका वर्णन है।
वैसे तो ये दो अलग-अलग पुस्तक भी हो सकती हैं, परंतु इन दोनों को एक साथ रखने का उद्देश्य भी यही है कि पाठकगण ‘स्वयं की ओर : एक यात्रा’ में वर्णित अनुभूतियों व उनकी समझ को ‘आध्यात्मिक यात्रा : एक साधक की डायरी से’ में लिखे गए पद्य तथा उसके लिखने के समय से जोड़कर देख सकें।

Bebaak Baat by Vijay Goyal

अपनी कलम के माध्यम से प्रशासन, शिक्षा, कला, संगीत, संस्कृति, रीति-रिवाज, तकनीकी, खेल, हैरिटेज और पर्यटन जैसे विभिन्न विषयों पर विजय गोयल ने नई नजर डाली है। उन्हेंने खुद को कभी राजनीति के दायरों में समेटकर नहीं रखा। नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, पंजाब केसरी, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा सहित प्रमुख राष्ट्रीय समाचार-पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने लेखों के माध्यम से उन्होंने देश के करोड़ों पाठकों के बीच उन विषयों को उठाया है, जो अकसर आम पाठक के मन में उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं, लेकिन उन्हें शब्द नहीं मिलते। इस पुस्तक में संगृहीत श्री गोयल के चुनिंदा लेख ऐसे ही विचारों और भावनाओं की बेबाकबयानी हैं। उनकी बेबाकी ही उनके लेखन की खूबी है, लिहाजा यही इस पुस्तक का शीर्षक है—‘बेबाक बात’।
मिसाल के तौर पर पुस्तक में शामिल ‘तो फिर सेंसर बोर्ड की जरूरत ही क्या?’ ऐसा ही लेख है। जब फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ की भाषा को लेकर हर तरफ चर्चा चल रही थी, तब किसी ने इस विषय पर लिखने का साहस नहीं किया, लेकिन विजय गोयल ने इस पर बेबाक लिखा। उनका लेख ‘नेताओं का दर्द कौन समझेगा’ राजनेताओं के जीवन की अंदरूनी उलझनों, कशमकम और परेशानियों को सामने लाता है। इस लेख को 400 सांसदों ने एक साथ पढ़ा।
प्रसिद्ध पत्रिका बाल भारती में 12 साल की उम्र में उनका लेख ‘मेरी पहली कहानी’ छपा था, जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने उसे कैसे लिखा। पिछले एक साल में उनके 100 से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं। ये लेख समाज में नए सवाल भी पैदा करते हैं और उनके जवाब भी तलाशते हैं। लेखक का मानना है कि वाजिब कारण होने पर सवाल खड़े होने चाहिए, तभी जवाब निकलते हैं और यही सिलसिला जीवन और समाज को सही दिशा में ले जाता है।

Yogigatha by Shantanu Gupta

यह जीवनी आपको अपने चार खंडों में योगी आदित्यनाथ के जीवन के चार पहलुओं से होकर ले जाती है। पुस्तक का आरंभ योगी के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के वर्तमान रूप, 2017 की उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति, यू.पी. का सी.एम. चुने जाने के तथ्यों और पंचम तल (यू.पी. के सीएम का दफ्तर) से होता है। दूसरा खंड आपको योगी आदित्यनाथ के पाँच बार के सांसद के रूप में लंबे कार्यकाल, चुनावी जीत, संसद् में उनकी कुशल भागीदारी, उनके तथाकथित विवादित भाषणों की सच्चाई, लव-जिहाद की उनकी सोच के पीछे का तर्क, घर वापसी, हिंदू युवा वाहिनी और भाजपा के साथ उनके संबंध से परिचित कराता है। तीसरे खंड में लेखक अपने पाठकों को गोरखनाथ मठ के महंत अवेद्यनाथ, योगी आदित्यनाथ, उनकी कठोर यौगिक दिनचर्या, नाथ पंथ के गुरुओं और कई दशकों से मठ की सामाजिक-राजनीतिक सक्रियता से होकर ले जाते हैं। आखिरी खंड में लेखक अपने पाठकों को उत्तराखंड के इलाके में पले अजय सिंह बिष्ट के बचपन से जुड़ी कुछ बेहद दिलचस्प और उनके अपनों के मुँह से कही बातों के साथ छोड़ देते हैं, जो गायों, खेतों, पहाड़ों, नदियों के बीच पला-बढ़ा और आगे चलकर एक सांसद और मुख्यमंत्री बना।

Samadhan Ki Ore by Prabhat Jha

भारत में आजादी के बाद देश की मूल समस्याओं की ओर शासकों ने ध्यान नहीं दिया। यहाँ की मूल समस्याएँ नागरिकों से जुड़ी हैं, जो आज भी उतनी ही ज्वलंत हैं, जितनी पूर्व में रहीं। आजादी के बाद जो भी शासन में आए, उन्होंने आजादी को ही भारत की समस्याओं की जीत समझ लिया। आजाद क्या हुए, सबकुछ मिल गया। जबकि सच्चाई यह है कि आजादी मिलनेवाले दिन से हमें नागरिकों की मूलभूत सुविधाओं और उनकी जीवन शैली के साथ भारत की प्रकृति के अनुसार उन समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए था। लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए। हम आजादी के बाद सत्ता में रहते हुए सेवा के माध्यम से सेवा में कैसे आगे आएँ, की बजाय हम सत्ता के माध्यम से सत्ता में कैसे आएँ, इस दिशा में बढ़ते चले गए— यहीं से हमारी समस्याओं की जड़ें गहरी होती गईं।
इस पुस्तक में देश की ऐसे ही प्राथमिक और ज्वलंत समस्याओं के प्रति चिंता व्यक्त की गई है। मातृभूमि की सेवा में, भारतमाता की आराधना में जो व्यक्तित्व सदैव अर्चना करते रहते हैं, हमने उनसे देश की ज्वलंत समस्याएँ रखीं और आग्रह किया कि देश में समस्याओं की तो चर्चा होती है, पर समाधान की नहीं। आप तो हमें समाधान दें। अपने भारत की प्रकृति को समझते हुए शब्दों के साधकों ने समाजकल्याण और राष्ट्रनिर्माण की दिशा में कुछ ठोस ‘शब्दांजलि’ परोसने का प्रयास किया है। हमने इस पुस्तक में उन्हीं के भाव और निदान की दिशा में दिए गए मार्गदर्शन को लेखबद्ध कर राष्ट्रहित में संपादन कर प्रकाशित करने का प्रयास किया है।

Antyodaya by Prabhat Jha

देश में जब भी सामाजिक-आर्थिक चिंतन की बात की जाती है तो गांधी, जेपी-लोहिया और दीनदयालजी का नाम लिया जाता है।
सामाजिक जीवन में और समाज
के आर्थिक जीवन में यदि हमारी अर्थव्यवस्था अंत्योदय युक्त होगी तो समाज-जीवन की चिती की साधना स्वतः सफल होती जाएगी। अंत्योदय शब्द में संवेदना है, सहानुभूति है, प्रेरणा है,
साधना है, प्रामाणिकता है, आत्मीयता है, कर्तव्यपरायणता है तथा साथ ही उद्देश्य की स्पष्टता है। दीनदयालजी कहा करते थे कि ‘जब तक अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय नहीं होगा, भारत का उदय संभव नहीं है’। वे अश्रुपूरित आँखों से आँसू पोंछने और उसके चेहरे पर मुसकराहट को अंत्योदय की पहली सीढ़ी मानते थे।
दीनदयालजी के अंत्योदय का आशय राष्ट्रश्रम से प्रेरित था। वे राष्ट्रश्रम को राष्ट्रधर्म मानते थे। अतः कोई श्रमिक वर्ग अलग नहीं है, हम सब श्रमिक हैं।
राष्ट्रविकास में सबको सम्मिलित कर भारत निर्माण का मार्ग प्रशस्त करनेवाली चिंतनपरक पुस्तक।

Ganitiya Akash Ke Nakshatra Dr. Dharma Prakash Gupta by Shashi Prakash

वे तो एक प्रतिभाशाली, मेधावी व परिश्रमी छात्र थे। वे तो गगनचुंबी विश्ववियात, महान् गणितज्ञ थे। सदैव आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर रहते थे। बस, पठन-पाठन में ही पूरा जीवन लगाया। कहते थे कि ये 24 घंटे के ही दिन-रात यों होते हैं, 48 घंटे के यों नहीं होते? बस, प्रतिपल कार्यरत रहना चाहते थे। निद्रा से दूर भागते थे। उनका बहुत बड़ा परिवार था, आज भी है। जहाँ-जहाँ भी रहकर पढ़े, सभी को अपने स्वभाव से, मधुर भाषा से सम्मोहित किए रहते थे। सभी के आदर्श थे वे। सभी के प्रेरणास्रोत थे प्रकाश। सबके प्रति अगाध प्रेम तो कूट-कूटकर भरा था उनके हृदय में। मृदुभाषी थे। जिससे भी 2 मिनट बात की, बस उन्हीं का हो जाता था। सांस्कृतिक कार्यक्रम व वार्षिक कार्यक्रम भी चलते थे, सभी धर्मों में भाग लेते थे। शेसपियर के ‘मर्चेंट ऑफ वेनिस’ ड्रामे में इन्होंने पोर्शिया की भूमिका निभाई थी। वार्षिक स्पोर्ट्स भी होते थे, उनमें भी भाग लेते थे। किसी भी कला क्षेत्र से दूर नहीं थे।
बी.एस-सी. की परीक्षा निकट थी कि फिमरबोन के पास खूब बड़ा सा फोड़ा निकल आया। बहुत चिंता थी कि अब या होगा? प्रैटिकल पास आ गए थे, खड़े नहीं हो पा रहे थे। धैर्य नहीं खोया था, दृढ़निश्चयी थे। आत्मबल, आत्मविश्वास, सब कुछ बटोरा और यह सोचकर कि कुछ भी असंभव नहीं है, मैं परीक्षा अवश्य ही दूँगा और पै्रटिकल का दिन आ गया। बी.एस-सी. फाइनल में फर्स्ट डिवीजन, फर्स्ट पोजीशन पाई थी।

Maun Muskaan Ki Maar by Ashutosh Rana

मैंने और अधिक उत्साह से बोलना शुरू किया, ‘‘भाईसाहब, मैं या मेरे जैसे इस क्षेत्र के पच्चीस-तीस हजार लोग लामचंद से प्रेम करते हैं, उनकी लालबत्ती से नहीं।’’ मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर एक विवशता भरी मुसकराहट आई, वे बहुत धीमे स्वर में बोले, ‘‘प्लेलना (प्रेरणा) की समाप्ति ही प्लतालना (प्रतारणा) है।’’ मैं आश्चर्यचकित था, लामचंद पुनः ‘र’ को ‘ल’ बोलने लगे थे। इस अप्रत्याशित परिवर्तन को देखकर मैं दंग रह गया। वे अब बूढ़े भी दिखने लगे थे। बोले, ‘‘इनसान की इच्छा पूलती (पूर्ति) होना ही स्वल्ग (स्वर्ग) है, औल उसकी इच्छा का पूला (पूरा) न होना नलक (नरक)। स्वल्ग-नल्क मलने (मरने) के बाद नहीं, जीते जी ही मिलता है।’’
मैंने पूछा, ‘‘फिर देशभक्ति क्या है?’’ अरे भैया! जरा सोशल मीडिया पर आएँ, लाइक-डिस्लाइक (like-dislike) ठोकें, समर्थन, विरोध करें, थोड़ा गालीगुप्तार करें, आंदोलन का हिस्सा बनें, अपने राष्ट्रप्रेम का सबूत दें। तब देशभक्त कहलाएँगे। बदलाव कोई ठेले पर बिकनेवाली मूँगफली नहीं है कि अठन्नी दी और उठा लिया; बदलाव के लिए ऐसी-तैसी करनी पड़ती है और करवानी पड़ती है। वरना कोई मतलब नहीं है आपके इस स्मार्ट फोन का। और भाईसाहब, हम आपको बाहर निकलकर मोरचा निकालने के लिए नहीं कह रहे हैं; वहाँ खतरा है, आप पिट भी सकते हैं। यह काम आप घर बैठे ही कर सकते हैं, अभी हम लोगों ने इतनी बड़ी रैली निकाली कि तंत्र की नींव हिल गई, लाखों-लाख लोग थे, हाईकमान को बयान देना पड़ा। मैंने कहा कि यह सब कहाँ हुआ, बोले कि सोशल मीडिया पर इतनी बड़ी ‘थू-थू रैली’ थी कि उनको बदलना पड़ा।
प्रसिद्ध सिनेमा अभिनेता आशुतोष राणा के प्रथम व्यंग्य-संग्रह ‘मौन मुस्कान की मार’ के अंश।

Moniya-Mohandas-Mahatma by Hemant

प्रस्तुत कथा-क्रम में गांधी के जीवन केचंद घटनात्मक दृश्यों को गूंथा गया है। हालाँकि उनकी विराट् जीवनगाथा में से चंद दृश्यों का चयन करना और उनको गुँथनापिरोना, वह भी घटनात्मक धारावाहिकता के साथ, बेहद कठिन चुनौती रही। फिर भी, प्रयास किया गया है कि यह कथा-क्रम ऐसा हो, जिसे पढ़ते-पढ़ते पाठक के मन में जिज्ञासा उभरे और वह खुद उन कथाओं के जरिये गांधी के जीवनक्रम के विकास को सहज ढंग से जोड़ता चले।
गांधी के जीवन से जुड़ी किसी भी घटना का विवरण कथा-रूप में यूँ प्रस्तुत किया गया है, जिसका कोई निचोड़ या निष्कर्ष निकालने के लिए कोई पाठक (बच्चा हो या बड़ा) खुद को स्वतंत्र भी महसूस करे। हो सकता है कि किसी घटना को पढ़कर किसी पाठक का दिमाग प्रश्नाकुल हो उठे और किसी अन्य पाठक में गांधी के प्रति जिज्ञासु भाव जगे। एक ही कहानी एक पाठक में श्रद्धा-भाव मजबूत करे, तो दसरे में अंधश्रद्धा को कमजोर करे। प्रकारांतर से ये कहानियाँ किसी भी किशोर को पूर्वाग्रह, शंका, शत्रुता, आदि की जकड़न से मुक्त कर पाठक, श्रोता और दर्शक बनने तथा गांधी की स्वतंत्र खोज करने को प्रेरित करें।
-इसी पुस्तक से

Long March : Bapu Ki Ba – Ba Ke Bapu by Hemant

सत्याग्रह के बारे में गांधीजी की व्याख्या और टिप्पणियों के अनगिनत दस्तावेज हैं। उनकी कही कई-कई बातें हैं। कुछ बातें ऐसी हैं, जो बच्चों की निर्दोष मुस्कान जैसी सरल दिखती हैं, लेकिन बड़े-बड़ों तक को रहस्यमय लगती हैं। उनकी एक बात तो सौ साल बाद भी, बड़ेबुजुर्गों तक को चौंकाती है। वे कहते हैं-प्रकृति का नियम है कि कोई भी वस्तु उन्हीं साधनों से अक्षुण्ण रखी जा सकती है, जिनसे उसे प्राप्त किया गया है। हिंसा से प्राप्त वस्तु को सिर्फ हिंसापूर्वक ही बचाया जा सकता है। सत्य से प्राप्त की गई वस्तु को सत्य से ही अक्षुण्ण रखा जा सकता है। सत्याग्रह में ऐसा कोई चमत्कारी तत्त्व नहीं है कि सत्य द्वारा प्राप्त वस्तु को सत्य का साथ छोड़कर अक्षुण्ण रखा जा सके। यदि ऐसा संभव हो, तो भी ऐसा नहीं होना चाहिए। आखिर इसके क्या मायने हैं?
प्रस्तुत कथा ‘लॉन्ग मार्च’ (बापू की बा : बा के बापू) पढ़कर आपको शायद लगेगा कि गांधी के लिए सत्याग्रह की सीमा-संभावना से जुड़ी उक्त बात प्रयोगसिद्ध हुई, इसलिए अनुभव सिद्ध हुई।
लेकिन आज भी अधिसंय अनुभवी लोग इस बात से सहमत नहीं नजर आते । युवा पीढ़ी के कई लोग तो इसे हर समय और स्थिति के लिए प्रयोजनसिद्ध भी नहीं मानते।
-इसी पुस्तक से

Hindi Patrakarita Ke Shikhar Purush Ramvriksh Benipuri by Hemant

मैं चुप रहा। वह बोलता गया-“तुम ऐसा करो, बेनीपुरी का जो ‘मोनोग्राफ’ तुम तैयार कर रहे हो, उसके लिए तुम सच्चाई की कल्पना के ‘मोड’ (Mode) में जाओ। खुद बेनीपुरी ने अपने बारे में जो कुछ लिखा और दूसरे समकालीनों ने उनके बारे में जो लिखा, उसको पढ़ो और देखो। पढ़कर देखने और पढ़ते-पढ़ते देखने का प्रयोग करो। माने यह कि तीन में से दो कारक तत्त्व-‘देश’ और ‘काल’–को बारीबारी से स्थिर करते हुए पात्र’ (बेनीपुरी) की मानसिक क्रियाओं के बॉडी लैंग्वेज’ में या फिर बॉडी की क्रियाओं के मानसिक लैंग्वेज में हुए और हो सकनेवाले बदलाव (विकास) का तुलनात्मक अध्ययन करो! इस अभ्यास के आधार पर उनके कार्य और कार्य करने के प्रोसेस का ‘रीफ्रेमिंग’ करो। फिर देखो, तुम्हें बेनीपुरी के पत्रकार बनने के कई रहस्य मालूम हो जाएँगे। वही लिखो। इसे पढ़कर कोई भी युवा सफल
और श्रेष्ठ पत्रकार बनने के गुर जान सकेगा और अपने में पत्रकार का हुनर विकसित करने के लिए अपना गुरु आप बन सकेगा। तब पत्रकार बनना चाहनेवाला हर विद्यार्थी तुम्हारी किताब को खरीदेगा ही, इसलिए वह निरंतर छपती रहेगी।
-इसी पुस्तक से

Savarkar Par Thope Huye Chaar Abhiyog by Harindra Srivastava

भारतीय इतिहास की सबसे कू्रर विडंबना यही रही है कि इसे कभी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से लिखा ही नहीं गया। वे चाहे नृशंस विदेशी आक्रांता हों अथवा चाटुकारिता के भूखे स्वदेशी शासक, सभी ने सदा ही, पंगु इतिहासकारों को लुभाकर अथवा डराकर अपनी प्रशस्ति लिखवाई और उसी को इतिहास कहा; जो यथार्थ में ‘उपहास’ या ‘परिहास’ से ऊपर उठ ही नहीं पाया।
विशुद्ध राष्ट्रीय दृष्टिकोण से इतिहास लिखने का पहला साहस किया भारत माँ के सपूत स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने, जिसने 1908 में फिरंगियों के आँगन (लंदन) में घुसकर उन्हीं के पुस्तकालयों से सामग्री जुटाकर ‘1857 का स्वातंत्र्य-समर’ नामक एक ऐसे मौलिक ग्रंथ की रचना की, जिससे समूचा विश्व प्रकंपित हो उठा और सारी पूर्व स्थापित ऐतिहासिक मान्यताएँ ध्वस्त हो गईं।
परिणाम स्पष्ट था। पुस्तक, प्रथम अध्याय प्रकाशित होने से पूर्व ही अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई। अंग्रेजों ने सावरकर से प्रतिशोध लेने के लिए एक के बाद एक मनगढ़ंत आरोप लगाकर उन पर अभियोगों की झड़ी लगा दी और वो भी विभिन्न देशों के न्यायालयों में।
प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं थोपे हुए अभियोगों का लेखा-जोखा है और आधारित है उस प्रामाणिक सामग्री पर, जो इन अभियोगों के मौलिक स्थलों पर जाकर वहीं के अभिलेखागारों से जुटाई गई है।
पूरे विश्व के इतिहास में कर्मयोगी सावरकर के इस पक्ष पर आज तक कुछ भी लिखा ही नहीं गया। यही है इस पुस्तक की अभूतपूर्व मौलिकता।

Phir Ek Dopahar Aur Anya Kahaniyan by Sanjeev Sanyal

उस भारत की एक मनोरंजक और अचरज भरी यात्रा, जिसे आप सोचते थे कि आप जानते हैं।_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x000D_
‘भारतीय भूगोल का संक्षिप्त इतिहास’ के लोकप्रिय लेखक संजीव सान्याल अपनी असाधारण कहानियों से पाठकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उनकी चिरपरिचित दिलचस्प शैली में लिखी गई उनकी कहानियाँ परिहास से भरी हैं।_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x000D_
‘मैं यहाँ हूँ अभी भी’ में इंटरनेट को बेनकाब करने निकले ढीठ ब्लॉगर को अपनी बरबादी का सामना करना पड़ता है। एक कहानी में एक युवक वित्तीय संकट के दौरान अपनी नौकरी गँवा देता है और दो बीयर के साथ अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने का प्रयास करता है। ‘बुद्धिजीवी’ में एक विदेशी शोधकर्ता कोलकाता के ढलती उम्र के बुद्धिजीवियों के बीच कुछ यादगार पल बिताता है। मुंबई हाउसिंग सोसाइटी की गंदी राजनीति से लेकर दिल्ली के कॉकटेल सर्किट के दंभ तक ‘दो बीयर का जीवन’ तेजी से बदलते भारत की तह तक जाता है और आपको हँसने पर विवश कर देता है।_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x005F_x000D_
रंग-बिरंगे सामाजिक परिवेश से सरोकार कराती पठनीयता से भरपूर रोचक-रोमांचक कहानियों का संकलन।

Badlav Ke Real Hero by N. Raghuraman

किसी भी अच्छी पहल को बस शुरू करने की जरूरत होती है। कुछ समय बाद उससे जुड़ी चीजें अपने आप अपनी जगह लेने लगती हैं और पहल को आगे ले जाती हैं, क्योंकि ऐसी पहल का मूल चरित्र होता है ‘अच्छाई’।
आपके पास जो कभी था ही नहीं, उसे बनाने के लिए आप में जुनून होना आवश्यक है, लेकिन इसे बनाए रखने के लिए आप में प्रतिबद्धता भी होनी चाहिए।
यदि आप अपने बच्चों को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तोहफा देना चाहते हैं तो उन्हें समझाइए कि पर्यावरण और इसकी प्रजातियों की रक्षा करें। एक थीम आत्मसात् कर लें—‘गो वाइल्ड फॉर लाइफ’, यानी जिंदगी के लिए वन्य जीवन को बढ़ावा दें। अगली पीढ़ी निश्चय ही आपके इस बेशकीमती तोहफे की कद्र करेगी।
बदलाव के लिए उम्र, शिक्षा और स्थान बाधा नहीं होते। बुरे हालातों में किसी समस्या को सुलझाने के लिए मदद का इंतजार करने से बेहतर है कि बदलाव लाया जाए।
अगली पीढ़ी में धरती को बचाने और खुद को शिक्षित करने जैसी एकदम नई संस्कृति विकसित करना भी दान उत्सव का हिस्सा है।
—इसी पुस्तक से
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ये सूत्र हैं ऐसे 75 रियल हीरोज के प्रेरणाप्रद जीवन का निचोड़, जिन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ समाज को दिया। अपने कर्तृत्व में दूसरों को दिशा दी और सफलता का मार्ग प्रशस्त किया।
आज के निराशा भरे समय में पथ-प्रदर्शक नायकों की प्रेरणाप्रद कहानियाँ।

Business Karna Apane Paise Bina by Dr. Suresh Haware

व्यापार में बाधाएँ व रुकावटें तो आती ही हैं। इनसे डरना नहीं, बल्कि इनका स्वागत करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से हमारी वास्तविक क्षमता की परीक्षा होती है। इसलिए इन्हें बुराई में अच्छाई मानना चाहिए। रुकावटें कई तरह की हो सकती हैं, जैसे आर्थिक, कानूनी, उत्पाद संबंधी, टैक्स संबंधी, कर्मचारी और प्रबंधन से संबंधित। हर समस्या का हल है, हमें बस उसे खोजना होता है।
अंत में, हमें इस कहावत को ध्यान में रखना होगा, ‘सिर सलामत तो पगड़ी पचास’ अर्थात् हम जो कुछ भी हासिल करना चाहते हैं, वह इसी भौतिक शरीर के द्वारा संभव है। अतः हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति सदा सचेत रहना चाहिए, जैसे यदि किसी प्रोजेक्ट में गिरावट आती है तो नुकसान बढ़ता है, मुनाफा घट जाता है, ऐसा ही हमारे स्वास्थ्य के साथ होता है। अतः अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखकर व्यापारी लंबी पारी खेल सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक शासकों, सरकारी अधिकारियों, समाज और अन्य लोगों को व्यापार व व्यापारियों के संबंध में एक सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करेगी, क्योंकि इस पुस्तक में विशेष रूप से कहा गया है कि व्यापारी देश की संपत्ति के सर्जक हैं, अर्थात् वे राष्ट्रीय संपदा के निर्माणकर्ता हैं।
लेखक के लंबे अनुभव से जनित यह पुस्तक नए उद्यमियों और बिजनेसमैन को पूँजी का सही निवेश और उपयोग करने का व्यावहारिक मार्ग बताती है और सफलता प्राप्त करने के गुरुमंत्र भी।