Rameshchandra Shah Ki Lokpriya Kahaniyan by Ramesh Chandra Shah

रमेशचंद्र शाह हिंदी के उन कम लेखकों में हैं, जो अपने ‘हिंदुस्तानी अनुभव’ को अपने कोणों से देखनेपरखने की कोशिश करते हैं, और चूँकि यह अनुभव स्वयं में बहुत पेचीदा, बहुमुखी और संश्लिष्ट है, शाह उसे अभिव्यक्त करने के लिए हर विधा को टोहतेटटोलते हैं—एक अपूर्व जिज्ञासा और बेचैनी के साथ। आज हम जिस भारतीय संस्कृति की चर्चा करते हैं, शाह की कहानियाँ उस संस्कृति के संकट को हिंदुस्तानी मनुष्य के औसत, अनर्गल और दैनिक अनुभवों के बीच तारतार होती हुई आत्मा में छानती हैं। इन कहानियों का सत्य दुनिया से लड़कर नहीं, अपने से लड़ने की प्रक्रिया में दर्शित होता है। एक मध्यवर्गी हिंदुस्तानी का हास्यपूर्ण, पीड़ायुक्त विलापी किस्म का एकालाप, जिसमें वह अपने समाज, दुनिया, ईश्वर और मुख्यतः अपने ‘मैं’ से बहस करता चलता है। शाह ने अपनी कई कहानियों में एक थकेहारे मध्यवर्गीय हिंदुस्तानी की ‘बातूनी आत्मा’ को गहन अंतर्मुखी स्तर पर व्यक्त किया है ः उस डाकिए की तरह, जो मन के संदेशे आत्मा को, आत्मा की तकलीफ देह को और देह की छटपटाहट मस्तिष्क को पहुँचाता रहता है। इन सबको बाँधनेवाला एक अत्यंत सजग, चुटीला और अंतरंग खिलवाड़, जिसमें वे गुप्त खिड़की से अपने कवि को भी आने देते हैं। पढ़कर जो चीज याद रह जाती है, वे घटनाएँ नहीं, कहानी के नाटकीय प्रसंगों का तानाबाना भी नहीं, परंपरागत अर्थ में कहानी का कथ्य भी नहीं, किंतु याद रह जाती है एक हड़बड़ाए भारतीय बुद्धिजीवी की भूखी, सर्वहारा छटपटाहट; जिसमें कुछ सच है, कुछ केवल आत्मपीड़ा, लेकिन दिल को बहलानेवाली झूठी तसल्ली कहीं भी नहीं।
—निर्मल वर्मा

Publication Language

Hindi

Publication Access Type

Freemium

Publication Author

RAMESH CHANDRA SHAH

Publisher

Prabhat Prakashana

Publication Year

2015

Publication Type

eBooks

ISBN/ISSN

9789351862734'

Publication Category

Premium Books

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